अहंकार मनुष्य को कहीं का नहीं छोड़ता है। अहंकारी व्यक्ति कभी सुखी नहीं रह सकता है। यही वजह है कि हमारे पुरखों ने हमेशा अहंकार से दूर रहने की शिक्षा दी है। यदि मूर्तिकार में अहंकार नहीं होता, तो वह शायद मृत्यु से भी बच जाता, लेकिन उसका अहंकार ही उसे ले डूबा। काफी समय पहले की बात है। किसी गांव में एक मूर्तिकार रहता था। वह इतनी सुंदर मूर्तियां बनाता था कि उनके जीवित होने का भ्रम पैदा होता था। धीरे-धीरे उसका चारों ओर नाम हो गया।
राजा महाराजा तक उसकी कला के प्रशंसक हो गए। धीरे-धीरे उसे अपनी कला पर अहंकार हो गया। इस बीच उसने धन भी काफी कमा लिया था। धीरे-धीरे समय बीतता रहा। वह वृद्ध हो गया, तो उसने सोचा कि अब उसकी किसी भी दिन मृत्यु हो सकती है। उसने अपनी जैसी ही दस मूर्तियां बनाई और वह उनमें छिपकर बैठ गया। अपने समय पर यमदूत आए, तो ग्यारह मूर्तियां देखकर वे चकित रह गए।
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उन्होंने सोचा कि मूर्तियों को तोड़ दूं, लेकिन यह कला का अपमान होता। थोड़ी देर बाद एक यमदूत ने कहा कि यह ग्यारह मूर्तियां बनीं तो बहुत अच्छी है, लेकिन एक गल्ती रह गई। अब मूर्तिकार का अहंकार जागा, उसने कहा कि कौन सी गलती रह गई है। यमदूत ने उसे पकड़ते हुए कहा कि यही गलती हो गई। तुम अपने अहंकार की वजह से ही पकड़े गए हो। यदि तुम चुप रहते तो हम असली नकली का भेद नहीं कर पा रहे थे। शायद हम लौट भी जाते, लेकिन तुम अपने दुर्गुण की वजह से ही पकड़े गए हो। अब मूर्तिकार के पास सिर्फपछतावा था।
-अशोक मिश्र
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