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नौनिहालों का कैसा भविष्य चाहते हैं, हमें तय करना होगा

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मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि ग्रेटर नोएडा स्थित गलकोटिया यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राओं के ज्ञान पर हंसू या रोऊं। जब से मैंने आजतक के रिपोर्टर आशुतोष मिश्र की रिपोर्टिंग वाली वीडियो देखी है, तब तब से मुझे अपने देश की शिक्षा व्यवस्था पर तरस आ रहा है। एक मई को गलगोटिया यूनिवर्सिटी की कुछ छात्र-छात्राएं कांग्रेस मुख्यालय पहुंची थीं वेल्थ डिस्ट्रीब्यूशन और इनहेरिटेंस टैक्स का विरोध करने। स्वाभाविक है कि इस प्रदर्शन के पीछे किसी भाजपा नेताओं का हाथ था। यह भी मान लेने में कोई बुराई नहीं है कि हो सकता है कि प्रदर्शनकारी छात्र-छात्राएं भाजपा के स्टूडेंट विंग से जुड़े हों। लेकिन उनके ज्ञान का स्तर जरूर चकित करने वाला था। हाथों में लिए कांग्रेस विरोधी हिंदी में लिखे प्लेकार्ड को वे ठीक से पढ़ नहीं पा रहे थे। उन्हें पता ही नहीं था कि वे किस मुद्दे को लेकर विरोध प्रदर्शन करने आए हैं। कांग्रेस अगर वेल्थ डिस्ट्रीब्यूशन करना चाहती है, तो वह कैसे करेगी?

मुझे लगता है कि उस वीडियो को इन छात्र-छात्राओं के मां-बाप ने भी देखा होगा। हो सकता है कि अपने बच्चों की अज्ञानता पर दुखी भी हुए हों। अफसोस तो इस बात का है कि कांग्रेस मुख्यालय पर प्रदर्शन करने वाले बच्चे डिग्री कोर्स कर रहे थे। अगर एक पोस्ट ग्रेजुएट हिंदी में लिखा एक वाक्य ठीक से नहीं पढ़ पाता है, तो उस छात्र के अध्यापकों और परिजनों को यकीनन चिंतित होना चाहिए। गलगोटिया यूनिवर्सिटी कोई ऐसी-वैसी यूनिवर्सिटी नहीं है। इसका काफी नाम है। यह भी पता चला है कि यूनिवर्सिटी अपने यहां संचालित सभी कोर्सों के लिए भारी-भरकम फीस वसूलती है। मध्यम या निम्न आयवर्ग का परिवार अपने बच्चों को यहां पढ़ाने की सोच नहीं सकता है। यह तो एक यूनिवर्सिटी की बानगी है। देशभर में खुले ऐसे न जाने कितने संस्थान होंगे, जो मोटी-मोटी फीस लेकर बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे होंगे। पिछले कुछ दशकों से हमारे देश में शिक्षा का स्तर काफी गिरा है।

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साल में एकाध बार जरूर ऐसी खबरें न्यूज पेपर या टीवी चैनलों पर आती रहती हैं कि आठवीं के छात्र को सौ तक गिनती नहीं आती, वे अपनी किताब का एक पेज ठीक से पढ़ नहीं पाते हैं। सात का पहाड़ा नहीं सुना पाए आदि-आदि। समझ में नहीं आता है कि हम किस तरह अपनी नई पीढ़ी को गढ़ रहे हैं? अंग्रेजी में गिटर-पिटर कर लेने से ही हम मान लें कि हमारा बच्चा विद्वान हो गया है? नहीं। अंग्रेजी तो भावों को व्यक्त करने, ज्ञान हासिल करने का माध्यम है, ज्ञान नहीं।

फिर मां-बाप देश और प्रदेश की सरकारों को कोसते हैं कि उनका बच्चा बीएससी, एमएससी, एमबीए, इंजीनियरिंग आदि करके भी बेरोजगार है। वैसे यह सरकार की मेहरबानी है कि हमारे देश का कोई भी शिक्षा संस्थान दुनिया की टॉप टेन में नहीं गिना जाता है। शिक्षा के नाम पर अपनी हाईफाई दुकान खोलकर बैठे शिक्षा माफिया सिर्फ कमाना चाहते हैं, पढ़ाना या ज्ञानी बनाना नहीं। हम अपने नौनिहालों का भविष्य कैसा चाहते हैं, यह हमें ही तय करना होगा।

Sanjay Maggu

-संजय मग्गू

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