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जब केंद्र की सत्ता में भागीदार होने का खुमार उतरेगा तब..?

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पिछले काफी दिनों से जिस पल की प्रतीक्षा पूरा देश कर रहा था, वह पल अंतत: आ ही गया। नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरी बार पीएम पद की शपथ लेकर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के रिकार्ड की बराबरी कर ली। हां, पिछले दो बार के कार्यकाल और वर्तमान कार्यकाल में सबसे बड़ा अंतर यह है कि यह भाजपा की सरकार नहीं, एनडीए की सरकार है जिसके मुखिया नरेंद्र मोदी हैं। काफी हद तक इस सरकार की लगाम एक तरह से तेलुगु देशम पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू और जनता दल यूनाइटेड के सुप्रीमो नीतीश कुमार के हाथ में है। भाजपा गृह, राजस्व और रक्षा मंत्रालय अपने पास रखने में सफल हो गई है, लेकिन टीडीपी द्वारा लोकसभा चुनावों के दौरान किए गए वायदों का क्या होगा।

लोकसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के मुस्लिम आरक्षण जैसे मुद्दों पर दिए गए भाषणों को याद कीजिए। 27 अप्रैल को पीएम मोदी ने घोषणा करते हुए कहा था कि जब तक मोदी जिंदा है, मैं दलितों का, एससी, एसटी और ओबीसी का आरक्षण धर्म के आधार पर मुसलमानों को नहीं देने दूंगा, नहीं देने दूंगा, नहीं देने दूंगा। वहीं, इसके अगले दिन टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू ने प्लेटफार्म एक्स पर पोस्ट डालते हुए कहा था कि मुसलमानों में आज भी गरीबी बनी हुई है। ऐसे समय में उनकी मदद करना हमारी जिम्मेदारी है। इसी क्रम में हम मुसलमानों के लिए 4 फीसदी आरक्षण बचाएंगे। इसमें कोई अन्य विचार नहीं है। दरअसल, अभी तो नई सरकार के गठन का खुमार भाजपा सहित एनडीए में शामिल सभी घटक दलों पर चढ़ा हुआ है।

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केंद्र सरकार में भागीदार होने की खुशी है। जिन मुद्दों पर सहमति नहीं बनी है, फिलहाल उसे टाल दिया गया है। भाजपा ने पहले से ही कुछ बातें साफ कर दी हैं। लेकिन महीने, दो महीने या साल भर बाद जब सत्ता का खुमार उतरेगा, तब क्या होगा? इसकी कल्पना की जा सकती है। आंध्र प्रदेश की जनता, खासतौर पर मुस्लिम जनता चार प्रतिशत आरक्षण की मांग करेगी, हज जाने वाले लोग एक लाख रुपये की मांग करेंगे, मदरसे और मस्जिद आर्थिक मदद की मांग करेंगे, तब क्या होगा? चंद्रबाबू नायडू ने अपने प्रदेश की जनता से वायदा तो चुनाव के दौरान बढ़-चढ़कर किया था।

अब जब केंद्र की सरकार में वे भागीदार हैं, तो उन्हें विपक्ष और जनता किए गए वायदों की याद तो दिलाएगी ही। महिलाओं को डेढ़ हजार रुपये महीना और बेरोजगारों को तीन हजार रुपये महीने देने का वायदा चंद्रबाबू नायडू कहां से पूरा करेंगे, जबकि आंध्र प्रदेश पहले से ही भारी कर्जे में डूबा हुआ है। साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये तो राजधानी अमरावती को सजाने-संवारने और नया रूप देने के लिए चाहिए। यदि केंद्र सरकार ने इन मांगों को पूरा करने में तनिक भी आनाकानी की, तो पिछली बार की तरह नायडू को केंद्र सरकार से पल्ला झाड़ने में कितना समय लगेगा? पिछली बार भी तो ऐसे ही कुछ मुद्दों को लेकर एनडीए से अलग हुए थे।

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