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संन्यासी होने का मतलब कठोर दिल होना नहीं

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लालच को दुनिया के हर देश में बुरा बताया गया है। हमारे देश में तो लालच को बुरी बला तक कहा गया है। इसके बावजूद इंसान में लालच कम होने की जगह पर बढ़ता जा रहा है। लेकिन इसी संसार में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनको दूसरे की संपत्ति का तनिक भी लालच नहीं होता है। ऐसी ही एक कहानी है छोटी सी बच्ची और उसकी मां की। बच्ची और उसकी मां थीं भी बहुत गरीब, लेकिन लालच तो तनिक भी नहीं था। एक बार की बात है। किसी प्रदेश में अकाल पड़ा। कई वर्षों तक बरसात न होने से फसल हुई ही नहीं।

लोगों के भूखे रहने की नौबत आ गई। उस प्रदेश के कुछ दयावान अमीरों ने लोगों की सहायता के लिए भंडारे किए। कुछ न कपड़े-लत्ते बांटे। एक धनी सेठ ने घोषणा की कि वह बच्चों को रोटी देंगे। अगले दिन से उनके घर के आसपास बच्चों की लाइन लग गई। उनमें एक छोटी बच्ची भी थी। रोटियां छोटी-बड़ी थीं। सभी बच्चे बड़ी रोटी लेना चाहते थे। लेकिन आखिर में उस बच्ची के हिस्से में छोटी रोटी आई। वह उस रोटी को लेकर खुशी-खुशी घर चली गई। दूसरे दिन फिर यही हुआ। छोटी बच्ची को अंत में एक छोटी रोटी मिली।

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वह प्रसन्नता से उस रोटी को लेकर चली गई। घर जाकर जब उसने रोटी को तोड़ा, तो उसमें से सोने की एक मुहर निकली। उसकी मां ने कहा कि यह मुहर उस सेठ की है, उसे वापस दे आओ। लड़की मुहर लेकर सेठ के घर गई और बोली कि आटे में गलती यह मुहर गिर गई थी। इसे मैं वापस करने आई हूं। यह सुनकर उस सेठ ने उस बच्ची को अपनी धर्म पुत्री बना लिया और उसकी मां को मासिक वजीफा बांध दिया ताकि उनके घर का खर्च चलता रहे। उनके पास कमाई का कोई जरिया भी नहीं था। बाद में वह लड़की सेठ की उत्तराधिकारी बनी।

-अशोक मिश्र

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