परिश्रम से जो अपना जी चुराता है, वह कभी अमीर नहीं बन सकता है। मेहनत ही इंसान को दुनिया भर की निधियों का मालिक बना देता है। लेकिन इस दुनिया में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो जीवन भर परिश्रम करके ही खाना चाहते हैं। कहते हैं कि किसी राज्य का राजा बहुत प्रजा वत्सल था। वह अपनी प्रजा का हर तरह से ख्याल रखता था। वह वेष बदलकर समय-समय पर प्रजा के बीच जाता था और उनकी समस्याओं को पता करता था। राजमहल लौटकर उन समस्याओं का निराकरण करता और फिर दूसरी ओर निकल जाता। प्रजा भी अपने राजा को बहुत प्यार करती थी।
एक दिन राजा ने सोचा कि अपने राज्य के सीमांत इलाकों में जाकर देखा जाए कि वह के लोगों का रहन-सहन कैसा है? लोगों को किसी प्रकार की परेशानी तो नहीं है। यही सोचकर वह अपने एक सहायक को साथ लेकर निकल पड़ा। उसने सीमांत गांवों में जाकर देखा और उसे कुछ समस्याएं नजर आईं तो उसने अपने सहायक को तत्काल इन समस्याओं के निराकरण का निर्देश दिया। फिर वह दूसरे गांव की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसने देखा कि एक बुजुर्ग लकड़हारा लकड़ी काट रहा है। उसका पूरा शरीर पसीने से भीगा हुआ है।
वह थक जाता तो थोड़ा आराम करने के बाद फिर अपने काम में जुट जाता। तभी राजा की निगाह उसके पास के पत्थर पर पड़ी जहां काफी हीरे पड़े हुए थे। राजा ने उससे कहा कि आपके पास में हीरे पड़े हुए हैं। आप अगर एक ही हीरा बेच दें, तो जिंदगी भर आराम से बैठकर खा सकते हैं। उस लकड़हाने ने कहा, बेटा! मैं उसे कई सालों से देख रहा हूं, लेकिन अभी इतना कमजोर नहीं हुआ हूं कि बिना मेहनत किए खाऊं। अभी मैं काम कर सकता हूं, तो आलसी क्यों बनूं। राजा उसकी बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उन हीरों को बेचकर प्रजा के हित में खर्च किया।
-अशोक मिश्र