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चुनावों में घटता मतदान लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए चिंताजनक

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संजय मग्गू
लोकतंत्र दो शब्दों से मिलकर बना है लोक+तंत्र यानी वह तंत्र जिसमें लोक के हित सर्वोपरि माने जाएं। लोकतंत्र की सच्ची तस्वीर तब बनेगी, जब पूरे लोक की इसमें भागीदारी हो, सहभागिता हो। लोकतांत्रिक व्यवस्था में देश का संचालन करने के लिए कम से कम दो या दो से अधिक राजनीतिक हों और लोकतांत्रिक व्यवस्था के संचालकों का चुनाव लोक यानी जनता करे। जनता जिसे चाहे अपने देश की व्यवस्था का संचालन करने के लिए चुने और चुना गया जनप्रतिनिधि जनता के हितों की रक्षा करे। पिछले कुछ दशकों से लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत हो रहे लोकसभा या विधानसभा चुनावों में लोगों की भागीदारी घटती जा रही है। अभी कुछ दिनों पहले ही हरियाणा में हुए विधानसभा चुनावों में यदि मतदान का प्रतिशत देखें, तो साफ पता चलता है कि एक बड़ी संख्या में मतदाता चुनावी प्रक्रिया में भाग ही नहीं ले रहे हैं। वह मतदान करने ही नहीं जाते हैं। खासतौर पर शहरी मतदाताओं में एक बड़ा हिस्सा मतदान में हिस्सा ही नहीं ले रहा है। मतदान में हिस्सा न लेने वालों में ऐसे लोग हो सकते हैं जिन्हें लोकतंत्र पर ही विश्वास न हो, इसलिए वह अपने को चुनावी प्रक्रिया से दूर रख रहे हों। यह भी हो सकता है कि उस दिन अवकाश होने के चलते लोग मतदान करने से ज्यादा उन्हें घर पर ही रहना पसंद हो या फिर परिवार के साथ छुट्टी होने के कारण घूमने चले गए हों। आलस्य या किसी बीमारी की वजह से मतदान करने न जा पाए हों। ऐसी कई तरह की संभावनाएं हो सकती हैं, लेकिन सच यही है कि एक बहुत बड़ी संख्या में लोग लोकतंत्र की पहचान बने चुनाव में अपनी भागीदारी नहीं दे रहे हैं। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। अभी हाल में हुए चुनाव में हरियाणा के ही कुछ शहरों के मतदान के प्रतिशत से यह बात साफ हो जाती है कि लोगों की मतदान में रुचि घट रही है। गुरुग्राम में 51.81 प्रतिशत मतदान हुआ। इसका मतलब है कि गुरुग्राा के 41.19 प्रतिशत लोगों ने वोट डालने की जरूरत ही नहीं समझी। फरीदाबाद में 53.74 प्रतिशत वोट पड़ा, लेकिन 46.26 प्रतिशत लोग वोट ही डालने नहीं गए। यह तो दो जिलों की बानगी है। लगभग थोड़ा बहुत अंतर के साथ पूरे देश के विधानसभा और लोकसभा चुनावों की यह तस्वीर रहती है। अब बचे पचास-साठ प्रतिशत मतदाताओं में तीस-चालीस प्रतिशत वोट हासिल करने के बाद जनप्रतिनिधि दावा करते हैं कि वह बहुमत हासिल करके सांसद या विधायक बने हैं, जबकि सच तो यह है कि पचास से साठ प्रतिशत मतदाता उसे नकार चुके होते हैं। इस बात को देश के थिंक टैंक भी जानते समझते हैं यही वजह है कि वह सभी मंचों से बार-बार अपील करते हैं कि सभी मतदान करें, लेकिन मतदाता हैं कि सुनते ही नहीं हैं।

संजय मग्गू

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