अशोक मिश्र
संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी का जन्म सन 1885 में अलीगढ़ के अहिवासनगला में हुआ था। वह बचपन से ही संत प्रवृत्ति के थे। ब्रह्मचारी संस्कृत, हिंदी, ब्रजभाषा के प्रकांड पंडित थे। इसके साथ ही साथ वह आध्यात्मिक क्षेत्र में काफी ऊंचा स्थान रखते थे। उन्होंने सतत नाम संकीर्तन की ज्योति जलाई थी। वह सदैव देश और समाज की समृद्धि की कामना किया करते थे। गोरक्षा, गंगा की पवित्रता, हिन्दी भाषा, भारतीय संस्कृति की सेवा ही उनके जीवन के प्रमुख लक्ष्य थे। उन्होंने गोरक्षा के मुद्दे पर अनशन, आन्दोलन तथा यात्राएं भी कीं। वह कांग्रेस नेता लाल बहादुर शास्त्री की सादगी और सात्विकता से बहुत प्रभावित थे। एक बार की बात है। लाल बहादुर शास्त्री को अंग्रेजों ने सत्याग्रह आंदोलन चलाने के अपराध में नैनी जेल भेज दिया था। जब यह सूचना ब्रह्मचारी को मिली, तो वह कुछ मिठाइयां, फल और खाने-पीने का सामान लेकर नैनी जेल में शास्त्री जी से मिलने पहुंचे। वह काफी दिनों से शास्त्री जी से मिलना चाह रहे थे। उन्होंने फल, मिठाई आदि शास्त्री जी को देते हुए कहा कि यह रख लीजिए। शास्त्री जी ने अपने साथ बंदी कुछ लोगों को बुलाकर वह सब चीजें उन्हें देते हुए कहा कि यह सब कैदियों में बांट दो। यह देखकर ब्रह्मचारी ने कहा कि यह सब मैं आपके लिए लाया था। शास्त्री जी ने कहा कि यह सब मेरे साथी हैं, मेरे ही कहने पर आंदोलन में भाग लिया था। वैसे जो कुछ भी मेरा है, वह सबका है। इन चीजों को मेरा अकेले खाना ठीक होगा क्या? आपने जो कपड़े भिजवाए थे, वह भी मैंने अपने साथियों में बांट दिया है क्योंकि कई साथियों के कपड़े फटे हुए थे। यह सुनकर संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी बहुत गदगद हो गए और बोले-सचमुच आप सादगी की साक्षात मूर्ति हैं।
बोधिवृक्ष : शास्त्री जी से प्रभावित हुए संत प्रभुदत्त
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