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हमारे देश में क्या पुरुष होना कोई गुनाह है?

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सुमन शर्मा
34 वर्षीय युवा एआई इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या ने बदलते सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्यों और असमानता के आधारों को पुष्ट करती हमारी लचर न्याय (विधि) व्यवस्था की भयावह नग्न तस्वीर को प्रस्तुत किया है। किसी भी न्याय व्यवस्था का ये सबसे अन्यायपूर्ण पहलू है कि किसी एक पक्ष को केवल इसलिए प्राथमिकता दे दी जाती है क्योंकि वो किसी वर्ग विशेष से संबंधित है। यथा-किसी की बात को इसलिए प्राथमिकता के साथ सुना व माना जाएगा कि वो ‘स्त्री समुदाय’ से सबंधित है। आज हम पुरुष समुदाय के प्रति असमान विधिक व्यवस्था की बात कर रहे हैं। ये केवल किसी एक अतुल सुभाष का केस नहीं है वरन लाखों पुरुष आज इस तरह के मामलों में फंसे हैं। यहाँ देखना विचारणीय रहेगा कि अतुल सुभाष की आत्महत्या से महिला और पुरुष के मध्य एक समान कानून व्यवस्था का आगाज होगा या अभी इसके लिए कुछ और अतुल सुभाषों की बलि की दरकार इस समाज और कानून व्यवस्था को रहेगी।
अगस्त 2022 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपना निर्णय देते हुए घरेलू हिंसा और 498 ए के दुरुपयोग पर चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि दादा-दादी और बिस्तर पर पड़े लोगों को भी फंसाया जा रहा है। मई में केरल हाईकोर्ट ने कहा था कि महिलाएं अक्सर बदला लेने के लिए पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ ऐसे मामले दर्ज करवा देती हैं। यहाँ विचारणीय है कि केवल परिवार के सदस्य ही नहीं बल्कि निकट रिश्तेदारों को भी इनमें घसीट लिया जाता हैं। ये समाज खुश कैसे रह सकता है जहाँ ‘हँसी ठिठोली’ भी विधिक अपराधों की श्रेणी में आ जाए और वो भी समुदाय विशेष के सदस्यों की इच्छा के आधार पर।
घरेलू हिंसा के कानून महिलाओं की पहचान, सुरक्षा व घर-समाज में उनके सम्मान को सुनिश्चित करने हेतु बनाए गए थे, परंतु वर्तमान में ऐसी स्थितियां बहुसंख्या में सामने आ रही है जिनमें  महिलाओं ने इन कानूनों का दुरुपयोग किया। कानून विशेषज्ञों की टिप्पणियां इस ओर संकेत करती है कि हम सभी जानते हैं कि एक बड़ी संख्या में महिलाओं द्वारा झूठे केस दर्ज कराए जाते हंै। केवल महिला होने के कारण वो कानून के दायरों में लाभ की स्थिति में खड़ी होती हैं।
एक सरकारी विद्यालय में नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली लड़की जो कि विद्यालय में मोबाइल फोन लेकर आई थी कि शिकायत जब उसकी कक्षा के मॉनिटर (जो कि एक लड़का था) ने अपने कक्षाध्यापक से की तो उस लड़की ने अपनी कक्षा के मॉनिटर को धमकी दी कि तुमने एक लड़की से पंगा लिया है अब मैं तुम्हें दिखाती हूँ कि लड़की होने के क्या फायदे हैं? और अगले ही दिन वो अपनी माँ के साथ लिखित कंप्लेंन स्कूल में देकर गई कि उसे स्कूल में लड़के छेड़ते हैं। इससे भी ज्यादा हैरानी की बात तब देखने में आई कि सारे स्टाफ ने मिलकर बात संभाली और इस बात पर सुकून महसूस किया कि शुक्र है इसने किसी पुरुष अध्यापक का नाम नहीं लिया। सोचिए क्या हालात बन रहे हैं।
हम ये नहीं कह रहे कि महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा हेतु कानून न हो वरन हम ये कहना चाहते हैं कि कानून को असमानता को बढ़ावा देने वाला नहीं होना चाहिए। कानून किसी पूर्वाग्रहों से ग्रस्त न हो। स्त्रियों को संरक्षण देने हेतु बनाए गये कुछ कानून इस धारणा पर आधारित हैं कि आरोपी पुरुष ने ही कुछ गलत किया होगा। हालाँकि यह ऐतिहासिक सत्य है कि भारतीय समाज में स्त्रियों पर कदम कदम पर अत्याचार होते रहे हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि इसका खामियाजा वर्तमान समय में उन पुरुषों को भी भुगतना पड़े जिन्होंने कानूनी दृष्टि से कुछ भी गलत नहीं किया है। पति-पत्नी के वैवाहिक संबंध में दरार आने की स्थिति में उन पर कठोर कानूनी शिकंजा अब कुछ स्त्रियों द्वारा पुलिस और न्याय पालिका की मदद से व्यक्तिगत और आर्थिक स्वार्थों की पूर्ति हेतु कसा जा रहा है।
(यह लेखिका के निजी विचार हैं।)

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