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हरियाणा में छुट्टियों के दौरान बच्चों को जीवन का पाठ पढ़ाने की तैयारी

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संजय मग्गू
हरियाणा में नए साल से स्कूलों में सर्दियों की छुट्टियां प्रारंभ हो रही हैं। एक पखवाड़े तक रहने वाली छुट्टियों की सूचना से बच्चे बहुत खुश होंगे। स्कूल की छुट्टियां हमेशा से ही बच्चों को आनंदित करती रही हैं। मौज-मस्ती, खेलने कूदने और देर तक सोने का मौका जो मिलता है स्कूल की छुट्टियों के दौरान। लेकिन शायद इस बार बच्चों को ऐसा मौका न मिले। हरियाणा स्कूल शिक्षा परियोजना परिषद यानी एचएसएसपीपी ने बच्चों को इन छुट्टियों के दौरान जीवन का पाठ पढ़ाने की योजना तैयार की है। इस मामले में सवाल बस इतना ही उठता है कि छुट्टियों के दौरान कितने मां-बाप अपने बच्चों से परिषद की योजना के अनुसार आचरण करवा पाएंगे। इसमें कोई दो राय नहीं है कि यदि परिषद की योजना के अनुसार बच्चों को काम पर लगाया जाए, तो बच्चों को कुछ वर्षों के बाद जीवन में आने वाली कठिनाइयों और समस्याओं को अभी से जान पाएंगे। परिषद की योजना है कि बच्चों को छुट्टियों के दौरान सबसे पहले मोबाइल, टीवी और इनडोर गेम्स खेलने या देखने का मौका ही नहीं दिया जाए। स्वीडन में दो साल से कम उम्र के बच्चों को मोबाइल चलाने पर पूरी पाबंदी लगा दी गई है। वहीं पांच से 12 साल के बच्चों के लिए भी समय सीमा निर्धारित कर दी गई है। बच्चों को मोबाइल और टीवी स्क्रीन के चलते होने वाली परेशानियों से लोगों को जागरूक किया जा रहा है। आस्ट्रेलिया ने तो बच्चों के मोबाइल इस्तेमाल पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है। परिषद की योजना भी यही है कि बच्चों को इन छुट्टियों के दौरान मोबाइल, टीवी और इस तरह की गतिविधियों से काट दिया जाए। इसके लिए स्कूली बच्चों के अभिभावकों से कहा गया है कि वह इन छुट्टियों के दौरान बच्चों से घर के छोटे-मोटे काम करवाएं। उन्हें रसोईघर में काम आने वाले बरतनों, मसालों और अन्य सामग्री से परिचित कराएं। उनकी पसंद की चीजों उन्हें खुद बनाने के लिए प्रेरित करें। बच्चों को प्रेरित करें कि वह रसोईघर के छोटे-मोटे काम करें। यदि घर में पेड़ पौधे हैं, पौधरोपण लायक जगह है, तो पेड़-पौधों को खाद-पानी देने और पौधरोपण का जिम्मा उन्हें सौंप दें। उन्हें यह भी बता दें कि इन पौधों को बड़ा करने की जिम्मेदारी अब उनकी है। बच्चों को बाहर खेलने जाने दें और उन पर निगरानी रखें। बच्चों से अपने और दूसरे कमरों की सफाई, बिस्तर को सहेजना, पालतू पशुओं की देखरेख करने को भी कहा जाए। यह सब छोटे-मोटे काम उन्हें जिम्मेदार बनाएंगे। उनमें एक चाह पैदा होगी कि वह भी घर के कुछ काम करके अपने परिजनों की शाबाशी हासिल करें। हरियाणा स्कूल शिक्षा परियोजना परिषद अपने मकसद में कितना कामयाब होता है, पैरेंट्स का कितना सहयोग मिलता है, यह समीक्षा करने पर ही पता चलेगा।

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