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मौसम अनुकूल नहीं होने से फसल उत्पादन प्रभावित होने की आशंका

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संजय मग्गू
जलवायु परिवर्तन का असर अब पूरी दुनिया में दिखने लगा है। कहीं चक्रवात आ रहा है, तो कहीं बेमौसम बारिश हो रही है। एक महीने पहले लास एंजिलिस में लगी आग कई दिनों तक बुझाई नहीं जा सकी। इसे भी जलवायु परिवर्तन का परिणाम माना जा रहा है। पृथ्वी का तापमान बढ़ने से जमीन की नमी कम होती जा रही है। इसकी वजह से पेड़-पौधों को आवश्यक जल नहीं मिल पाने से जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। भारत भी इस प्रभाव से अछूता नहीं है। हरियाणा में भी पिछले कुछ साल से जलवायु परिवर्तन का असर साफ देखा सकता है। जनवरी के अंतिम सप्ताह में ही थोड़ी-थोड़ी गरमी महसूस की जाने लगी थी। फरवरी महीने का पहला सप्ताह बीतने जा रहा है, लेकिन उतनी ठंड इस बार नहीं पड़ रही है जिस ठंड के लिए फरवरी जानी जाती रही है। दिन और रात के तापमान में दस से बारह डिग्री सेल्सियस का अंतर है। इसका असर फसल उत्पादन पर पड़ने की आशंका पैदा हो गई है। कृषि वैज्ञानिकों ने तो अब यह आशंका जतानी शुरू कर दी है कि इस बार प्रदेश में तीस प्रतिशत फसल उत्पादन घट सकता है। यदि ऐसा होता है, तो किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचने वाला है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति पर भी विपरीत असर पड़ने वाला है। ऐसा नहीं है कि ऐसा सिर्फ हरियाणा में ही होगा। पूरे उत्तर भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण फसल उत्पादन पर विपरीत असर होने वाला है। इससे अन्न उत्पादन में कमी और इसकी वजह से खाद्यान्न के महंगे होने की आशंका है। इस बार हरियाणा में ही 25 लाख हेक्टेयर गेहूं बीजे जाने का अनुमान है। हरियाणा कृषि विभाग का अनुमान है कि यदि जल्दी ही मौसम में ठंडक नहीं बढ़ी, तो तीस प्रतिशत तक गेहूं का उत्पादन कम हो सकता है। अगैती बोई गई गेहूं की फसल पीला रेतुआ नामक बीमारी की चपेट में आ सकती है। पीला रतुआ रोग लगने पर गेहूं की फसल पीली पड़ने लगती है और पौधों को मिट्टी से आवश्यक पोषण नहीं मिल पाता है। इससे पौधा कमजोर हो जाता है। मौसम अनुकूल न होने की वजह से गेहूं की बालियां समय से पहले ही पीली पड़ने लगेंगी। इसका नतीजा यह होगा कि गेहूं के दाने पतले और हलके हो जाएंगे। हरियाणा में पर्याप्त बरसात और बढ़ती गरमी की वजह से चना और सरसों जैसी फसलों का उत्पादन भी प्रभावित हो सकता है। जरूरत से ज्यादा गर्मी पड़ने पर पौधों का विकास रुक जाता है। फसल समय से पहले ही पकने लगती है। इससे बचने के लिए किसानों को समय-समय पर हलकी सिंचाई करनी पड़ सकती है जिससे फसल की लागत बढ़ेगा। लागत बढ़ने से किसानों को होने वाला मुनाफा भी घट जाएगा। जलवायु परिवर्तन के चलते देश और प्रदेश में महंगाई बढ़ेगी।

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