मनुष्य अपने पुरुषार्थ के नगाड़े कितने ही क्यों न पीट ले, अपने कर्तव्य के ध्वज हाथ में लेकर उन्मत होकर वह कितना ही क्यों न नाच ले, लेकिन अंत में विशाल और अनंत आकाश के सामने वह ठिगना और अपूर्ण ही रहता है। अपूर्णता ही जीवन का स्थायी भाव है, इस बात का अनुभव देश की सामान्य जनता को लोकसभा में प्रधानमंत्री के विरुद्ध विपक्षियों द्वारा मणिपुर प्रकरण पर लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर हो गया। उस तथाकथित महामानव की इतनी दुर्दशा हो जाती है कि वह मुंह छुपाने के लिए आश्रय खोजने लगता है। कई व्यक्ति धैर्यवान, बुद्धिमान और पराक्रमी होने के बावजूद अहंकार से ग्रस्त होने के कारण सफल नहीं हो पाते हैं। कुछ ऐसी चूक वह कर जाता है जो समाज के लिए अक्षम्य होता है। असम से कांग्रेस सांसद गौरव गोगई ने चर्चा की शुरुआत करते हुए मणिपुर के मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरा। गौरव गोगई ने चर्चा के दौरान केंद्र सरकार से तीन सवाल पूछे। पहला प्रश्न उनका था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर क्यों नहीं गए? उन्हें वहां के हालात पर बोलने के लिए 80 दिन क्यों लगे? मुख्यमंत्री एन. वीरेंद्र सिंह को हटाया क्यों नहीं गया?
राहुल गांधी ने लोकसभा में दूसरे दिन अविश्वास प्रस्ताव पर बहस में हिस्सा लिया। अपने संबोधन में भारत जोड़ो यात्रा, मणिपुर हिंसा और कई मुद्दों पर उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया दी। भाषण की शुरुआत करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि आज का भाषण अदाणी पर नहीं है, इसलिए भाजपा के सांसदों को परेशान होने की जरूरत नहीं है। कांग्रेस नेता ने मणिपुर पर बात करते हुए कहा कि जब हम सपनों को पूरे करते हैं, तब हमें हिंदुस्तान की आवाज सुनाई देती है। भारत एक आवाज है, भारत इस देश के सब लोगों की आवाज है और अगर हमें वह सुननी है, तो नफरत को भुलाना पड़ेगा। कुछ दिन पहले मैं मणिपुर गया, लेकिन प्रधानमंत्री आज तक नहीं गए, क्योंकि उनके लिए मणिपुर हिंदुस्तान नहीं है। मणिपुर के मुद्दे पर राहुल गांधी ने केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला बोला और कहा कि हिंदुस्तान को मणिपुर में मारा है, उसका कत्ल किया, मर्डर किया। भारत माता की हत्या मणिपुर में की गई। मणिपुर के लोगों को मारकर भारत माता की हत्या की गई। आप देशद्रोही हो, देशप्रेमी नहीं हो। इसलिए आपके प्रधानमंत्री मणिपुर नहीं जाते। अब आप हरियाणा में जो कुछ कर रहे हो उससे पूरा देश जलने में लगा है।
यह ठीक है कि इस अविश्वास प्रस्ताव से सरकार का कुछ नहीं बिगड़ेगा, लेकिन इतनी बात जरूर हुई है कि देश की आम जनता को इस बात पर मनन करने का अवसर मिल गया है कि मणिपुर को इस जातीय हिंसा में किसने और किसलिए झोंका। मसला बहुत ही गंभीर है, लेकिन इस पर शीर्ष सत्तारूढ़ नेताओं का मौनव्रत साध लेना कहां तक उचित है। अब तो यह बात छोटी पड़ गई है कि दो महिला को 3 मई को निर्वस्त्र करके सारेआम घुमाया गया, उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया, क्योंकि सत्तारूढ़ ने आमजन का ध्यान भटकाने के लिए मणिपुर के उस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के महत्त्व को यह कहकर कम करने का प्रयास कर दिया है कि राजस्थान, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ में भी ऐसी घटनाएं हुई हैं जिस पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया है। हद तो तब हो गई जब सत्तारूढ़ ने यह कहना शुरू कर दिया कि मणिपुर की आग को राहुल गांधी और आईएनडीआईए के लगभग 21 सांसदों ने वहां जाकर आम लोगों की भावनाओं को कुरेदा है जिसके कारण वहां की जातीय हिंसा की आग शांत नहीं हो पाई है। मणिपुर प्रकरण इतना गंभीर हो गया है कि देश ही नहीं, विदेश में भी इस पर भारत सरकार की थू—थू कर रहे हैं। याद करिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब फ्रांस यात्रा पर थे, तो उनके वहां रहते 27 यूरोपियन देशों ने मणिपुर की घटना पर भारत के विरुद्ध एक प्रस्ताव पेश कर दिया था, लेकिन उसकी भी परवाह न करते हुए सरकार ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया।
निशिकांत ठाकुर