हरियाणा वृद्धावस्था पेंशन घोटाले की जांच अब सीबीआई करेगी। यह खबर आज लगभग सभी अखबारों में सुर्खियों में है। यह घोटाला पूर्व सरकार में हुआ था। वर्तमान सरकार का इससे कोई लेना-देना भी नहीं है। लेकिन यही सोचकर मनोहर सरकार को संतोष की सांस नहीं लेनी चाहिए क्योंकि हर पांच, दस या पंद्रह साल में भले ही शासन करने वाली पार्टी बदल जाती हो, लेकिन पेंशन घोटाले को अंजाम देने वाली नौकरशाही का चुनाव उनके कार्यकाल में सिर्फ एक ही बार होती है। सरकारें आती जाती रहती हैं, लेकिन नौकरशाही वही रहती है जो इससे पूर्व सरकार में थी। उनका तबादला भले ही हो, लेकिन प्रशासन में वे किसी न किसी रूप में बने जरूर रहते हैं।
वर्ष 2011 में जब कैग की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ था कि वृद्धावस्था पेंशन में बहुत बड़ा घोटाला हुआ है, तभी इस मामले में कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए थी, लेकिन नौकरशाही ने इस बात को दबाने की भरपूर कोशिश की। उचित जांच भी नहीं होने दी। नतीजा यह हुआ कि लोगों को इस मामले को लेकर कोर्ट की शरण में जाना पड़ा। शाहबाद निवासी राकेश बैंस के वकील प्रदीप रापड़िया ने हाईकोर्ट को जो जानकारी दी है, वह आश्चर्यजनक है। ताज्जुब की बात है कि 40 साल से भी कम उम्र के लोग वृद्धावस्था पेंशन ले रहे थे।
वे लोग भी वृद्धावस्था पेंशन के हकदार बने हुए थे और सरकारी पेंशन भी उठा रहे थे। हालात यहां तक बदतर थे कि एक भारी संख्या में उन लोगों को भी पेंशन जा रही थी जो कई साल पहले दिवंगत हो चुके थे। स्वाभाविक है कि यह सब कुछ किसी एक व्यक्ति द्वारा किया गया घोटाला नहीं था। इसमें पूरी एक लाबी काम कर रही थी। ऊपर से लेकर नीचे तक सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत थी। हां, इस मामले में कोई मंत्री भी शामिल रहा हो, तो कोई ताज्जुब की बात नहीं है।
अब पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने मामला सीबीआई को सौंप दिया है, तो एक उम्मीद जरूर बंधती है कि करोड़ों रुपये का घोटाला करने के आरोपी पकड़ में आएंगे और उन्हें कानून के मुताबिक सजा मिलेगी। मनोहर सरकार को भी भ्रष्टाचार के मामलों को संज्ञान लेकर कड़ाई से कार्रवाई करनी चाहिए। नौकरशाही पर अंकुश लगाकर ही भ्रष्टाचार की लड़ाई जीती जा सकती है।
संजय मग्गू