मन का अहंकार और नाम कमाने की लालसा व्यक्ति को कभी शांत नहीं बैठने देती है। कई लोग तो इसी लालसा में पूरा जीवन गुजार देते हैं। हर आदमी चाहता है कि जब वह इस दुनिया से जाए तो लोग उसके कार्यों को याद करें। इसी लिए जब भी वह कोई नवनिर्माण करता है, तो उस पर अपने नाम की पट्टी जरूर लगाता है, ताकि इसे देखने वाले लोग उसका नाम जान सकें। यह प्रवृति दुनिया के हर देश में आपको देखने को मिल जाएगी। लोग अपना नाम अमर करने को मरे जा रहे हैं। एक बार की बात है। किसी राज्य का राजा बहुत दयालु था। उसने अपनी प्रजा की सुख-सुविधा का बहुत ख्याल रखा। उसने अपनी प्रजा के लिए गुरुकुल आश्रम बनवाए, पेड़-पौधे लगवाए।
सड़कें और तालाब बनवाए। इसके बावजूद उसके मन को शांति नहीं थी। एक दिन उसने सुना कि कोई संत आया है और एक वृक्ष के नीचे बैठकर लोगों को उपदेश दे रहा है। राजा ने अपने पुत्र और एक मंत्री को साधु के पास भेजा। राजकुमार ने संत से बड़ी विनम्रतापूर्वक कहा कि महाराज ने आपको महल में रहने को आमंत्रित किया है। आप महल में पधारें। संत ने हंसते हुए जवाब दिया कि साधु-संत को एकांत में ही रहना और भगवान का स्मरण करना चाहिए। उनका महलों में क्या काम है? राजकुमार और मंत्री लौट गए। अगले दिन राजा स्वयं पधारे और हाथ जोड़कर साधु से बोले, प्रभु! इतना सब कुछ करने के बाद भी मेरे मन को शांति नहीं मिलती है।
कोई उपाय बताएं जिससे मन को शांति मिले। संत ने कहा कि आपने जितने भी तालाब खुदवाए, पाठशालाएं बनवाईं, सड़कें और अन्य सुविधाओं के लिए कार्य किए, आपके कर्मचारियों ने उन पर आपके नाम का शिलापट्ट लगाए जिससे आपके पुण्यों का क्षरण हो गया है। यह सुनकर राजा ने तुरंत नाम का पट्ट हटाने का आदेश दिया। इसके बाद राजा सुख से रहने लगा।
अशोक मिश्र