आसन्न लोकसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश में प्रभावित करने वाली तीन महत्वपूर्ण घटनाएं हो रही हैं। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा, कांग्रेस नेता राहुल गांधी की न्याय यात्रा और बसपा सुप्रीमो मायावती का अकेले चुनाव लड़ने का फैसला। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा पूरे गाजे-बाजे के साथ 22 जनवरी को की जा रही है। भाजपा ने अपनी इस मुहिम से साबित कर दिया है कि वह सिर्फ राम मंदिर पर 2024 का आम चुनाव लड़ने जा रही है। इसके लिए वह पूरे देश से राम का दर्शन कराने की योजना बनाए हुए है।
अगले दो महीने तक वह पूरे देश से लोगों को बसों और ट्रेनों के जरिए अयोध्या ले आएगी और दर्शन कराएगी। चूंकि अयोध्या यूपी में है, इसलिए उसका असर देश के किसी राज्य से ज्यादा यूपी में ही पड़ेगा। इसी से उत्साहित होकर भाजपा ने यूपी की सभी अस्सी सीटें जीतने के लिए मिशन 80 का टारगेट रखा है। भाजपा की रणनीति को टक्कर देने के लिए कांग्रेस ने राहुल गांधी की न्याय यात्रा शुरू की है। वे पूरे देश में भाजपा को रोकना चाहती है। लेकिन वह यह भी जानती है कि अगर यूपी में भाजपा को रोक दिया गया तो पूरे देश में वह वैसे ही रुक जाएगी।
भाजपा को यूपी में रोकने के लिए ही राहुल गांधी सबसे ज्यादा यूपी में ही रहेंगे। राहुल गांधी बिहार से यूपी के चंदौली जिले में प्रवेश करेंगे और करीब 20 जिलों से गुजरते हुए आगरा के रास्ते राजस्थान में प्रवेश करेंगे। यात्रा के दौरान राहुल गांधी वाराणसी, प्रयागराज, अमेठी, रायबरेली, लखनऊ, सीतापुर, शाहजहांपुर, बरेली, बदायूं, अलीगढ़, हाथरस और मथुरा से गुजरेंगे। इस तरह यूपी में वे 1074 किमी की यात्रा करेंगे। अगर ध्यान से देखें तो इसमें ज्यादा इलाका अवध क्षेत्र का है जिसमें कांग्रेस की स्थिति बाकी इलाकों से बेहतर है। दरअसल, कांग्रेस ने 2009 में 21 लोकसभा सीटें जीती थीं। इस बार वह उन्हीं सीटों पर फिर से ध्यान देना चाहती है। यह यात्रा भी उन्हीं सीटों को ध्यान में रखकर बनाई गई है।
एक बात सभी लोग मानने लगे हैं कि यूपी में भाजपा को चुनौती देना आसान नहीं है। अभी तक इंडिया गठबंधन में सपा, कांग्रेस, राष्ट्रीय लोक दल और अपना दल का कृष्णा पटेल वाला गुट शामिल है। इसके मुकाबले भाजपा अनुराधा पटेल के अपना दल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर और निषाद पार्टी के संजय निषाद के साथ बहुत भारी पड़ रही है। पिछले विधानसभा चुनावों में भी यही देखने को मिला। भाजपा ने अपने सहयोगियों के साथ चुनाव लड़कर 402 में से 255 सीटें जीत लीं। जबकि समाजवादी पार्टी अपने सहयोगियों के साथ लड़कर सिर्फ 111 सीटें ही जीत सकी। मत प्रतिशत में भी दोनों के बीच काफी अंतर रहा।
जहां भाजपा को करीब 42 प्रतिशत मत मिला, वहीं सपा को 32 प्रतिशत के करीब। भाजपा को यूपी में हराने की बस एक ही स्थिति बनती थी कि इंडिया गठबंधन में बसपा और कांग्रेस भी शामिल हो जाएं। पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा को करीब 13 प्रतिशत वोट मिला था और कांग्रेस को ढाई प्रतिशत। इस तरह यह अगर 15 प्रतिशत वोट और बढ़ता तो भाजपा को कांटे की टक्कर दी जा सकती थी। लेकिन इस बार बसपा सुप्रीमो मायावती ने अकेले ही चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
पिछले लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा को 49.98 प्रतिशत वोट मिले थे। यानी लगभग अजेय वाली स्थिति। इस आधार पर देखें तो भाजपा अकेले एक तरफ और बाकी पूरा विपक्ष एक तरफ। रही बसपा की बात तो मायावती फैसले पलटने में माहिर हैं। खासकर चुनावों को लेकर। वो कब क्या करेंगी किसी को नहीं पता। अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को टिकट दे देती हैं और ऐन वक्त पर बदल देती हैं। पिछले लोकसभा चुनावों में भी यह तय हो गया था कि यूपी में सपा, बसपा और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ेंगे। लेकिन मायावती ने ऐन वक्त पर कांग्रेस को गठबंधन से बाहर करा दिया।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-अमरेंद्र कुमार राय