गौतम बुद्ध का जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थीं, जिनका इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ। उनका पालन महारानी की सगी छोटी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया। 29 वर्ष की आयुु में सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और धर्मपत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य दिव्य ज्ञान की खोज में रात्रि में राजपाठ का मोह त्यागकर वन की ओर चले गए।
वर्षों की कठोर साधना के पश्चात उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से महात्मा बुद्ध बन गए। एक बार महात्मा बुद्ध लोगों को धर्म का उपदेश देते हुए काशी की ओर जा रहे थे। मार्ग में एक गृहत्यागी उपक से उनकी मुलाकात हुई। वह गृहस्थ जीवन को सांसारिक प्रपंच मानता था। वह महात्मा बुद्ध के तेजस्वी और निश्छल मुख को देखकर बहुत प्रभावित हुआ। उसने महात्मा बुद्ध से कहा कि मुझे लगता है आपने पूर्णता को प्राप्त कर लिया है।
बुद्ध ने कहा कि हां, यह सच है। मैंने निर्वाण की अवस्था प्राप्त कर ली है। उसने पूछा कि आपके गुरु कौन हैं? बुद्ध ने कहा कि मैंने स्वयं से निर्वाण प्राप्त किया है, मेरा कोई गुरु नहीं है। यह सुनकर उपक को लगा कि बुद्ध को अहंकार हो गया है। वह वहां से चला गया। कुछ दिनों बाद उसको एक व्यापारी की पुत्री से प्रेम हो गया और उसने उससे विवाह कर लिया। फिर उसे लगा कि उसने माता-पिता को निर्रथक छोड़ दिया है। वह पत्नी को लेकर माता-पिता के पास गया। कुछ दिन बाद उसकी बुद्ध से मुलाकात हुई। वह बुद्ध के सत्संग में शामिल हुआ और मुक्ति पथ का पथिक बन गया।
-अशोक मिश्र