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पानी को लेकर ओछी सियासत!

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भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (बीबीएम) ने हरियाणा एवं राजस्थान के लिए 26,840 क्यूसेक अतिरिक्त पानी क्या छोड़ा, पंजाब के सियासी गलियारे में चख-चख शुरू हो गई। यह बहुत दु:खद है कि पानी के बंटवारे को लेकर पंजाब की ओर से अक्सर खींचातानी होने लगती है। पहले तो यह समझ लेना चाहिए कि हरियाणा को मिला पानी कोई खैरात नहीं है, बल्कि यह उसका हक है।मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इस मुद्दे पर हमेशा बहुत विनम्र रवैया अख्तियार किया, लेकिन पंजाब के सियासी दलों ने शायद इस विनम्रता को प्रदेश सरकार की कमजोरी समझ लिया है।

आपको याद होगा कि इसी साल जनवरी में एसवाईएल नहर के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद दिल्ली स्थित श्रम शक्ति भवन में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की अध्यक्षता में दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की एक बैठक बुलाई गई थी, जिसमें पानी के बंटवारे पर बातचीत होनी थी, लेकिन पंजाब सरकार अंत तक अपनी जिद पर अड़ी रही, नतीजतन मामले का निपटारा संभव नहीं हो सका।

बैठक में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल  बार-बार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते रहे, लेकिन पंजाब सरकार टस से मस नहीं हुई। बैठक में हरियाणा ने भी दो टूक लहजे में यह साफ कर दिया कि एसवाईएल उसका हक है, जो उसे मिलना ही चाहिए और इस मुद्दे पर वह झुकेगा नहीं, अपनी लड़ाई जारी रखेगा। दरअसल, मसला कितना भी विवादित क्यों न हो, अगर संबंधित पक्षों में इच्छा शक्ति होती है, तो निपटारे में कोई खास दिक्कत पेश नहीं आती।

अगर कोई पक्ष यही ठान ले कि विवाद बरकरार रखना है, तो फिर सुलह की राह कठिन हो जाती है। पानी के बंटवारे का मुद्दा इतना जटिल नहीं है कि सुलझ न सके। कोशिश करने पर बड़े से बड़े मसलों का निपटारा हो जाता है। बशर्ते, संबंधित पक्षों का रवैया सकारात्मक बना रहे। किसी भी मसले के एक-दो बिंदुओं पर तो असहमति हो सकती है, लेकिन ऐसी असहमतियों की आड़ लेकर पूरा मसला ही दरकिनार कर देना समझदारी नहीं है। पंजाब के सियासी दलों को यह सोचना चाहिए कि हरियाणा उनका पड़ोसी राज्य है, उसकी भी अपनी जरूरतें हैं। और, वह पानी को लेकर सिर्फ अपना हक चाहता है, किसी की मेहरबानी नहीं।

संजय मग्गू

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