महात्मा बुद्ध को जब बुद्धत्व प्राप्त हुआ, तो उसके बाद वह किसी भी स्थान पर बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं रुकते थे। वह हमेशा लोगों को सरल भाषा के साथ अपने आचरण से उपदेश देने की कोशिश करते थे। वे छोटी-छोटी घटनाओं और बातों के माध्यम से गूढ़ अर्थ देने वाले उपदेश दिया करते थे। एक बार की बात है। वह लोगों को उपदेश देते हुए भ्रमण कर रहे थे। इस दौरान वे एक गांव में पहुंचे। गांव के बाहर एक बाग में उन्होंने लोगों को उपदेश दिया। उनका उपदेश सुनने उस इलाके का एक सेठ भी आया था। वह महात्मा बुद्ध के उपदेश से बहुत प्रभावित हुआ।
उसने महात्मा बुद्ध से आग्रह किया कि वह उनके आवास पर भिक्षा प्राप्त करने के लिए पधारे। जब सेठ चला गया, तो लोगों ने बुद्ध से कहा कि यह सेठ बहुत लालची, क्रूर और अन्यायी है। इसके घर मत जाइए। लेकिन बुद्ध उसके घर जाने के लिए तैयार हो गए। नियत समय पर महात्मा बुद्ध उस सेठ के घर पधारे और भिक्षा के लिए अपना कमंडल आगे कर दिया। सेठ ने बुद्ध के लिए खीर बनाई थी। उसने देखा कि जिस पात्र में खीर डालनी है, उसमें गोबर लगा हुआ है। तब सेठ ने कहा कि भंते! मुझे अपना पात्र दे दीजिए, यह गंदा है। मैं इसे धो लाऊं।
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महात्मा बुद्ध ने उसे अपना पात्र दे दिया। सेठ उस पात्र को अच्छी तरह धोकर लाया और खीर भर दिया। बुद्ध चलने लगे, तो उसने उपदेश देने की प्रार्थना की। बुद्ध ने कहा कि मैंने जो उपदेश देना था, दे दिया। जिस तरह गंदे पात्र में खाने पीने की वस्तु नहीं डाली जा सकती है, उसी तरह गंदे और कुटिल विचारों वाले मन को उपदेश नहीं दिया जा सकता है। यदि तुम अपने मन को निर्मल बनाना चाहते हैं, तो लोभ, अन्याय, क्रूरता रूपी गंदगी को धोकर मन को साफ कर लो। यह सुनकर सेठ समझ गया कि बुद्ध उसे क्या समझाना चाहते हैं।
-संजय मग्गू
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