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Editorial: अपने ही सिस्टम से पीड़ित प्रताड़ित महिला जज

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देश रोज़ाना: दूसरों को न्याय देने वाला जज ही जब अपने साथ हुए नाइंसाफी और शारीरिक शोषण के लिए आरोपियों को सजा न दे पाए, इसके बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है। यह न्यायिक व्यवस्था पर किसी करारे तमाचे से कम नहीं है कि यदि एक जज को सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की मांग करनी पड़े। एक महिला जज का एक जज और उसके सहयोगी शारीरिक शोषण करते हैं, उसे रात में बुलाते हैं। उसे जहां से भी न्याय की उम्मीद होती है, वह वहां गुहार लगाती है, लेकिन कुछ नहीं होता है। कोई भी उसकी पीड़ा नहीं सुनता है। उसको न्याय देने को कोई भी तैयार नहीं है।

आम भारतीय नागरिकों को अगर किसी पर भरोस होता है, तो वह है न्यायपालिका। गरीब से गरीब और दूरदराज इलाके में रहने वाले व्यक्ति को भी इस बात का भरोसा होता है कि यदि उसके साथ होने वाले अन्याय की बात पुलिस नहीं सुनेगी, जनप्रतिनिधि नहीं सुनेंगे, मीडिया नहीं सुनेगी, तो अदालत जरूर सुनेगी। उसे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा होता है। न्यायपालिका उसे निराश भी नहीं करती है। ज्यादातर मामलों में पीड़ित को न्याय भी मिलता है।

आरोपी तभी बच निकलता है, जब आरोपी के खिलाफ कोई पुख्ता सुबूत न हों या परिस्थितियां उसके बेगुनाह होने या न होने के बीच की ओर इशारा करती हों। यानी जब यह संदेह हो कि आरोपी ने अपराध किया है या नहीं, तब उसे संदेह का लाभ मिलता है। लेकिन एक महिला जज जब अपने ही सिस्टम से परास्त होने लगती है, तो मर जाने की इच्छा का पैदा होना, आश्चर्यजनक नहीं है। ताज्जुब की बात यह है कि जिन लोगों पर शारीरिक शोषण का आरोप महिला जज लगाती है, उन्हें ही गवाह बना दिया जाता है।

हाईकोर्ट की इंटरनल कमेटी को छह महीने में सैकड़ों मेल भेजने के बाद भी जांच शुरू न होना, सिस्टम की खामियों को उजागर करता है। हालांकि अब मामला सीजेआई की संज्ञान में है। पीड़ित जज को निश्चित रूप से न्याय मिलेगा, इसकी गारंटी दी जा सकती है। भारतीय न्याय व्यवस्था पर आम आदमी से लेकर शीर्ष पदों पर बैठे लोगों क भरोसा पहले भी कायम था और आज भी भरोसा कायम है। न्याय व्यवस्था के तालाब में एक मछली गंदी हो सकती है, लेकिन पूरे तालाब का पानी अभी सड़ा नहीं है। अब जब मामले का खुलासा हो गया है, तो दोषी बचेंगे नहीं, यह विश्वास है। लेकिन अब यह न्याय व्यवस्था की जिम्मेदारी है कि वह देश के 136 करोड़ से अधिक लोगों के विश्वास और आस्था को कायम रखे।

न्यायपालिका में ही नहीं, सभी क्षेत्र में न जाने कितनी महिलाएं इन्हीं स्थितियों से गुजर रही हैं। उन्हें भी न्याय मिलना चाहिए। इस देश में महिलाएं ही सबसे ज्यादा शोषित और पीड़ित हैं। उनको न्याय मिले, जल्दी न्याय मिले, इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ न्याय पालिका को भी आगे आना होगा। तभी देश में स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना हो सकेगी।

  • संजय मग्गू
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