कांग्रेस के प्रसिद्ध नेता दादा भाई नौरोजी का मानना था कि किसी पर कम से कम निर्भर रहा जाए, तो जीवन बड़ी शांति से गुजर सकता है। काम कोई भी हो, छोटा बड़ा नहीं होता है। यही वजह है कि दादा भाई नौरोजी कांग्रेस कार्यकर्ताओं में सर्वप्रिय थे। एक बार की बात है। किसी काम से दादाभाई नौरोजी लंदन गए। उनके साथ लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक भी थे। लंदन के किसी शहर में रहना उन दिनों भी काफी खर्चीला था। खर्चे कम करने के लिए नौरोजी और तिलक शहर के पास के एक गांव में ठहर गए। एक दिन की बात है। नौरोजी की आंख जल्दी खुल गई। उन्होंने नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद देखा कि उनके जूते गंदे हो गए हैं। उन्होंने सोचा कि जूतों पर पॉलिस कर लिया जाए।
उन्होंने अपने जूतों पर पॉलिस करने के बाद देखा कि तिलक के भी जूते गंदे हैं। उन्होंने तिलक के जूतों को उठाया और उस पर पॉलिस करने लगे। तभी संयोग से तिलक की नींद खुल गई। उन्होंने नौरोजी को अपने जूतों पर पॉलिस करते देखा, तो झट से नौरोजी के हाथ से अपने जूते छीन लिया और बोले, आप यह क्या कर रहे हैं। अभी नौकर आता, तो जूतों पर पॉलिस कर देता। इस पर नौरोजी ने कहा कि अरे भाई! जैसे मेरे जूते, वैसे आपके जूते।
मैं अपने जूतों पर पालिस कर सकता हूं, तो आपके जूतों पर क्यों नहीं। जहां तक नौकर की बात है किसी पर हमें कम से कम निर्भर रहना चाहिए। तभी हमारा जीवन सुखी हो सकता है। यह सुनकर तिलक लज्जित हो गए। उन्होंने झटपट अपने जूते उठाए और पालिस करने लगे। उनके जूते चमकने लगे। उस दिन के बाद से तिलक ने अपना काम खुद करना शुरू कर दिया।
अशोक मिश्र