हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर कहते हैं कि भारत जल्दी ही पांच ट्रिलियन से ज्यादा इकोनॉमी वाला देश हो जाएगा। पिछले साल ही भारत ने चार ट्रिलियन वाली अर्थव्यवस्था की सीमारेखा को छुआ था। वह विभिन्न क्षेत्रों में शुरू हो रहे स्टार्टअप का जिक्र करना भी नहीं भूलते हैं। कुछ लोग तो यह भी कहने से नहीं चूकते हैं कि बहुत जल्दी ही भारत चीन की अर्थव्यवस्था को पछाड़कर दुनिया की दूसरी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। इस बात से कौन भारतीय होगा जिसको खुशी नहीं होगी। लेकिन सच क्या है? इसको भी ध्यान में रखना जरूरी है। चीन की अर्थ व्यवस्था लगभग 18 से 19 ट्रिलियन डॉलर के बराबर है। चार-पांच गुनी अर्थव्यवस्था को अगर मात देनी है, तो हमें जीडीपी की दर को दुगुनी तिगुनी करनी होगी, जो अभी फिलहाल संभव नहीं दिखती है। हमारे देश में अर्थव्यवस्था तो गति पकड़ रही है, लेकिन नौकरियों में कमी आती जा रही है।
सरकार स्वरोजगार की ओर युवाओं को प्रोत्साहित करने का प्रयास कर रही है। रोजगार के लगभग हर क्षेत्र में आधुनिकतम तकनीक के इस्तेमाल ने नौकरियों के अवसर काफी कम कर दिए हैं। हमसे कुछ साल बाद आजाद होने वाले चीन की अर्थव्यवस्था ने सन 1980 के बाद गति पकड़नी शुरू की थी। तब चीन में विदेशी पूंजी निवेश के साथ-साथ औद्योगिक क्षेत्र में बहुत सारे स्टार्टअप शुरू हुए थे। पढ़े-लिखे और विभिन्न टेक्निकल कोर्सों को कंप्लीट करने वाले युवाओं को निजी क्षेत्र हाथों हाथ ले रहे थे। उन्हें सरकारी नौकरियों से कहीं ज्यादा वेतन, सुविधाएं और छुट्टियां मिल रही थीं। कई सरकारी विभागों को तो कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ रहा था।
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निजी क्षेत्र की कंपनियों ने युवाओं को इस कदर मोह लिया कि वे सरकारी नौकरियों को ज्वाइन करना हेय समझने लगे थे। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। निजी कंपनियों का सारा उत्साह कोरोना काल के बाद ठंडा पड़ गया है। बहुत सारे स्टार्टअप बंद हो गए हैं या बंद होने के कगार में हैं। भारत में तो चीन जैसी स्थिति कभी रही ही नहीं। न तो निजी क्षेत्र में और न ही सरकारी विभागों में कि नौकरियों की भरमार रही हो। चीनी अर्थव्यवस्था की बिगड़ती हालत को देखते हुए युवाओं का भरोसा अब निजी कंपनियों से उठता जा रहा है।
वे अब इस फेर में पड़ते जा रहे हैं कि किस तरह बचत की जाए और भविष्य के लिए पैसा बचाया जाए। उनमें अब पैसे बचाने की धुन सवार हो रही है। चीन के युवा इन दिनों इंटरनेट पर और आपसी बातचीत में अक्सर इस बात की चर्चा पाए जा रहे हैं कि पैसे की बचत कैसे की जाए? सरकारी नौकरियों के लिए भी अब वे लालायित दिखाई देने लगे हैं ताकि कम से कम जीवन यापन तो सुरक्षित रहे। बंद होती निजी कंपनियां युवाओं में भय पैदा कर रही हैं। उनमें अपनी नौकरी की स्थिरता को लेकर घबराहट है। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि यदि उनकी नौकरी चली गई, तो वे करेंगे क्या? क्या भारत को भी चीन की दशा से सबक नहीं लेना चाहिए?
-संजय मग्गू
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