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आशा, उल्लास और उत्साह का संचार करता है होलिकोत्सव

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होली हमारे देश का प्रमुख त्यौहार है। यह त्यौहार बताता है कि रंगों का हमारे जीवन में कितना महत्व है। प्रकृति के हर हिस्से में रंग बिखरा हुआ है। इन रंगों के बिना हमारा जीवन कितना सूना-सूना सा लगेगा, यही एहसास दिलाता है, रंगों का त्यौहार होली। हमारा देश उत्सवप्रिय है। दुनिया के सभी धर्मों में कुछ ही गिने-चुने तीज-त्यौहार पाए जाते हैं, लेकिन हमारे देश में शायद ही कोई महीना हो, जिसमें कोई तीज, त्यौहार, व्रत, उपवास की प्राचीन परंपरा न हो। यह परंपराएं कोई आज की नहीं हैं। सदियों पुरानी हैं। भारत के सभी तीज-त्यौहार और व्रत उपवास दो ही चीजों से जुड़े हैं-कृषि या स्वास्थ्य से। लगभग सभी प्रमुख त्यौहार कृषि से जुड़े हैं। व्रत और उपवास की परंपराएं स्वास्थ्य से जुड़ी हैं। सदियों पहले हमारे पूर्वज इस बात को समझ गए थे कि सप्ताह में एक दिन निराहार रहने या सिर्फ फलाहार पर ही निर्भर रहने से शरीर में जमा होने वाले विषाक्त पदार्थ शरीर से बाहर निकल जाते हैं।

अनावश्यक चर्बी एक दिन उपवास या व्रत रहने से निकल जाती है। यह स्वास्थ्यवर्धक परंपरा का पालन सभी करें, इसलिए इनको धर्म से जोड़ दिया गया। अब होली, दिवाली या दशहरा जैसे त्यौहारों को लें। सब कृषि से ही जुड़े हुए हैं। होली त्यौहार मनाए जाने के संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं। भक्त प्रहलाद से लेकर श्रीकृष्ण तक से जुड़ी कथाएं हमारे देश में कही जाती हैं। इन कथाओं को जोड़कर होली को सर्वप्रिय बना दिया गया है। भक्त प्रहलाद और होलिका की कथा हो, श्रीकृष्ण और पूतना की कथा हो, कामदेव और शिव, राजा पृथु और राक्षसी ढुंढी, सभी कथाओं में एक बात सर्वमान्य है अन्याय की न्याय के सामने पराजय। इन सभी कथाओं में अन्यायी लोगों की पराजय हुई थी, यह संदेश देने के लिए होलिकोत्सव मनाया जाता है।

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मूलत: किसानों का पर्व कहे जाने वाले होली पर किसान झूम-झूमकर अपने जीवन में रंग भरता है। उसने सर्दियों में जिन फसलों को बोया है, सींचा है, उनकी निराई गुड़ाई की हैं, अब वे पककर तैयार हैं या पकने वाली हैं। अपनी मेहनत को मुद्रा में बदलने की आशा से किसान मुदित है। हांड़ कंपा देने वाली सर्दी भी अब विदा हो चुकी है।

मौसम खुल चुका है। ऐसी स्थिति में अपनी मेहनत को सफल होते देखकर किसान और उसका परिवार नई आशाओं से भर उठा है। उसके पास अभी खेतों में करने को कोई काम भी नहीं है। ऐसी स्थिति में वह और उसका परिवार अपने हितैषियों, पड़ोसियों और रिश्ते-नातेदारों के साथ होलिकोत्सव मनाकर अपनी खुशियों का प्रकटीकरण करता है। यह भी सच है कि आज इन तीज-त्यौहारों के मायने बदल गए हैं। लेकिन यह भी सच है कि होली का पर्व हमारे जीवन की निराशा और अकर्मण्यता को दूर कर आशा, उत्साह और उल्लास का संचार करता है।

Sanjay Maggu

-संजय मग्गू

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