ईश्वरचंद विद्यासागर समाज सुधारक और शिक्षाविद होने के साथ-साथ दार्शनिक भी थे। वे हमेशा महिलाओं की स्थिति को उच्च बनाने की कोशिश में लगे रहते थे। वे स्त्री शिक्षा और विधवा विवाह के घोर हिमायती होने के साथ-साथ बाल विवाह के घोर विरोधी थे। उन दिनों बंगाल या उत्तर भारत में विधवा विवाह को अच्छा नहीं समझा जाता था। लेकिन विद्यासागर अपनी धुन में लगे रहते थे। वे किसी भी काम को छोटा बड़ा नहीं मानते थे। एक बार की बात विद्यासागर को इंग्लैंड में किसी कार्यक्रम को संबोधित करना था। वे समय के बहुत पाबंद थे। नियत समय पर वे कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे तो कुछ लोग बरामदे में टहल रहे हैं। कुछ लोग बगीचे में बैठे हुए गप्प लड़ा रहे हैं। उन्होंने लोगों से पूछा कि कार्यक्रम क्यों नहीं शुरू हो रहा है?
तो लोगों ने बताया कि हाल की सफाई करने वाला अभी तक नहीं आया है। यह सुनते ही विद्यासागर ने झाडू उठाई और हाल की सफाई करने लगे। उनकी देखा देखी कुछ लोग और आ गए जिन्होंने वहां रखे फर्नीचर को आगे पीछे करने में मदद की। कुछ ही देर में पूरा हाल साफ हो गया। कार्यक्रम शुरू हुआ तो लोग ताज्जुब में पड़ गए कि जो व्यक्ति अभी हाल की सफाई कर रहा था, वही कार्यक्रम को संबोधित करने आया है। विद्यासागर ने लोगों से कहा कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है।
जिस व्यक्ति को सफाई करने आना था, हो सकता है कि उसे उचित समय पर सूचना न मिली हो या फिर किसी संकट में फंस गया हो। एक आदमी के लिए इतने आदमियों का समय बरबाद करना उचित नहीं है। लोगों को विद्यासागर की बात सुनकर पश्चाताप हुआ। उन्होंने अपनी सोच बदलने का वायदा किया।