ईमानदारी का प्रचार करना सही नहीं
अशोक मिश्र
ईमानदारी का प्रचार करना किसी भी रूप में उचित नहीं माना गया है। यह मनुष्य का धर्म है। स्वामिभक्त होना भी एक मानवीय गुण है। हमारे देश में एक से बढ़कर एक ऐसे लोग हुए हैं जिनकी अपने मालिक के प्रति प्रतिबद्धता और ईमानदारी जगजाहिर रही है। लेकिन उन्होंने इसका प्रचार कभी नहीं किया। आजादी से पहले बड़ौदा रिसायत के मेहसाना जिले के जिला जज थे एआर शिंदे। वह बहुत ही ईमानदार थे। वह किसी के प्रति अन्याय नहीं करते थे। उनके पास जो भी मुकदमा आता था, वह हमेशा न्याय का पक्ष लेते थे। उनके लिए अमीर-गरीब सब बराबर थे। वह हिंदुस्तानी और अंग्रेज में भी भेदभाव नहीं करते थे। उनके इन गुणों से बड़ौदा के महाराज भलीभांति परिचित थे। यही वजह है कि वह उन्हें बहुत मानते थे। वह जब भी विदेश यात्रा पर जाते थे, तो वह उन्हें अपने साथ ले जाते थे। एक बार की बात है। वह फ्रांस की यात्रा पर गए तो जिला जज एआर शिंदे को भी अपने साथ ले गए। फ्रांस यात्रा के दौरान उन्हें पेरिस में हीरे-जवाहरात की एक बहुत बड़ी दुकान देखी, तो शिंदे से सलाह मशविरा करके वह कुछ जेवर खरीदने गए। जेवर खरीदने के बाद वह अपने निवास पर लौट आए। अगले दिन जौहरी के एक कर्मचारी शिंदे के पास आया और बोला, आपको अपना कमीशन चेक से चाहिए या नकद। यह सुनकर शिंदे चौंके और उन्होंने कहा, कैसा कमीशन। उस कर्मचारी ने कहा कि हमारी परंपरा है कि जो भी ग्राहक को हमारी दुकान पर लाता है, तो उसको कमीशन दिया जाता है। शिंदे ने कमीशन लेने से मना करते हुए कहा कि कमीशन की जितनी रकम बनती है, वह दाम में से काटकर महाराजा से भुगतान ले लिया जाए। उस समय हजारों रुपये कमीशन को छोड़ने वाले शिंदे को वह कर्मचारी आश्चर्य से देखता रहा।
अशोक मिश्र