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किसान आंदोलन को हलके में लेना कहीं भारी न पड़ जाए

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संजय मग्गू
खनौरी बॉर्डर पर किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के अनशन को 35 दिन हो गए हैं। उनकी हालत दिनोंदिन खराब होती जा रही है। वह पहले से ही कैंसर के रोगी हैं और अब तो उन्होंने पानी पीना भी छोड़ दिया है। पानी पीने से उनको उल्टियां आती थीं। उधर सुप्रीमकोर्ट की कोशिश यह है कि किसी तरह डल्लेवाल को स्थायी या अस्थायी अस्पताल में शिफ्ट करके उनकी जान बचाई जाए। डल्लेवाल अपनी जिद पर अड़े हुए हैं। ऐसी हालत में जब मामला इतना पेचीदा हो, तो क्या विकल्प बचता है? तीन-साढ़े तीन साल पहले जब किसानों ने तीन नए कृषि कानूनों और फसलों पर एमएसपी की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया था, तो लगभग डेढ़ साल आंदोलन चलने के बाद केंद्र सरकार ने तीन नए कृषि कानून को निरस्त करने के साथ-साथ कमेटी बनाकर उसकी सिफारिशों को लागू करने का वायदा किया था। काफी समय बाद जब एमएसपी के बारे में कुछ होता हुआ नहीं दिखा, तो पिछले साल पंजाब के किसान अपनी कुछ नई और कुछ पुरानी मांगों को लेकर 13 फरवरी को खनौरी और शंभू बॉर्डर पर आ डटे क्योंकि हरियाणा सरकार ने उन्हें आगे बढ़ने ही नहीं दिया। तब से दोनों बॉर्डर पर कभी तेज तो कभी धीमा किसान आंदोलन चलता आ रहा है। लेकिन जब से किसान नेता डल्लेवाल ने आमरण अनशन शुरू किया है, तब से किसान आंदोलन कुछ गति पकड़ने लगा है। वह किसान संगठन जो इससे पहले के आंदोलन स्थगित होने के बाद अलग हो गए थे, अब वह भी धीरे-धीरे वर्तमान किसान आंदोलन के साथ जुड़ने लगे हैं। दिल्ली बॉर्डर पर चले किसान आंदोलन के समय तय किया गया था कि जब तक किसान आंदोलन अपने लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर लेता, तब तक कोई किसान नेता चुनाव नहीं लड़ेगा। लेकिन बाद में कई किसान नेताओं ने चुनाव लड़कर अपना भाग्य आजमाया। नतीजा यह हुआ कि किसान संगठनों में फूट पड़ गई। हरियाणा की खाप पंचायतें भी किसान आंदोलन के सााथ जुड़ने लगी हैं। कल ही हिसार में हुई 65 खाप पंचायतों ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी है कि वह डल्लेवाल से बात करे, अन्यथा आगामी नौ जनवरी को वह कड़ा फैसला लेने पर मजबूर हो जाएंगे। हालात कितने विस्फोटक हैं, इस बात को सुप्रीमकोर्ट समझ रही है। यदि किसान नेता डल्लेवाल को कुछ हो गया, तो किसान बेकाबू हो जाएंगे। किसानों के साथ-साथ दूसरे लोग भी आ जुड़ें तो कोई ताज्जुब नहीं होगा। डल्लेवाल किसी के समझाने पर मानेंगे, ऐसा नहीं लगता है। इस मामले में केंद्र सरकार को ही पहल करनी होगी। उसे तत्काल अपने किसी सक्षम मंत्री को भेजकर डल्लेवाल सहित दूसरे किसान नेताओं से बात करनी चाहिए। कोई सार्थक पहल करके डल्लेवाल का अनशन तुड़वाए।

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