महात्मा बुद्ध ने हमेशा लोगों को स्वावलंबी बनने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि लोग जब आत्म निर्भर होंगे, तो उनका और राज्य का विकास होगा। आत्म निर्भरता ही जीवन में खुशियां लाती है। जो लोग आत्मनिर्भर नहीं होते हैं, वे राज्य पर बोझ के समान होते हैं। उनके समकालीन एक राजा ने अपने राज्य में घोषणा की कि जिसको भी जरूरत हो, वह राज महल के दरवाजे से दो मुट्ठी स्वर्ण मुद्राएं ले जा सकता है। यह बात महात्मा बुद्ध तक पहुंची, तो वह चकित रह गए। अगले दिन उन्होंने वेश बदला और राजा के महल के दरवाजे पर पहुंच गए। उन्होंने कहा कि यदि दो मुट्ठी स्वर्ण मुद्राएं मिल जाएं, तो वह शादी कर लेंगे।
राजा ने कहा कि ले लो। वह दो मुट्ठी में स्वर्ण मुद्राएं भरकर कुछ दूर गए और फिर महल के दरवाजे पर लौट आए। उन्होंने राजा से कहा कि शादी करूंगा, तो उसके लिए घर भी चाहिए। राजा ने कहा कि दो मुट्ठी स्वर्ण मुद्राएं और ले लो। बुद्ध ने ले लिया। फिर बोले कि जब शादी होगी, तो बच्चे भी होंगे। उनके लिए भी पैसे की जरूरत होगी। राजा ने फिर वही बात दोहराई जो पहले कही थी। बुद्ध ने भी और दो मुट्ठी स्वर्ण मुद्राएं उठा ली। इसके बाद फिर बुद्ध बोले कि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और शादी के लिए भी तो स्वर्ण मुद्राएं चाहिए। राजा ने फिर वही बात दोहराई। तब बुद्ध अपने वास्तविक रूप में आ गए।
राजा ने महात्मा बुद्ध को देखा, तो चरणों में गिर पड़ा। महात्मा बुद्ध ने कहा कि तुम अपने राज्य की प्रजा को सुखी देखना चाहते हो, तो उन्हें आत्मनिर्भर बनाओ। उन्हें सुविधाएं देकर पर निर्भर क्यों बनाना चाहते हो। तुम्हारे दो मुट्ठी स्वर्ण मुद्राएं देने से व्यक्ति कामचोर हो जाएगाा। यह स्वर्ण मुद्राएं कब तक बांट पाओगे। यह कभी सोचा है तुमने। यह सुनकर राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने बुद्ध से क्षमा मांगी।
अशोक मिश्र