खुदरा बाजार में एक पखवाड़े पहले 25 से 30 रुपये किलो की दर से बिकने वाला टमाटर आज 120 रुपये प्रति किलो के टैग के साथ सीना ताने सामने खड़ा है। प्याज 30 रुपये, आलू 25 से 30 रुपये, अरबी 80 रुपये, शिमला मिर्च 100 रुपये, परवल 80 से 100 रुपये प्रति किलो की दर बिक रहे हैं। सिर्फ कुछेक हरी सब्जियां जैसे बींस, कद्दू व लौकी 30 से 40 रुपये प्रति किलो की रेंज में रहकर राहत दे रही हैं। यह तो हुई कुछ साग-सब्जियों की बात। उधर अरहर की दाल ने रसोई का जायका बिगाड़ दिया है, जिसका भाव 160 से 170 रुपये प्रति किलो तक जा पहुंचा है। इसी तरह राजमा 150 से 160, सफेद चना 150 से 155 और काला चना 160 से 170 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहे हैं। अन्य दालों एवं मसालों का भी यही हाल है।
खाद्य तेलों के दामों में भी 20 से 25 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। कहने का आशय यह है कि महंगाई ने आम जन का बजट बिगाड़ दिया है। सरकारी कर्मचारियों एवं पेंशन भोगियों को तो समय-समय पर महंगाई भत्ता मिल जाता है, लेकिन निजी क्षेत्रों में कार्यरत लोगों का हाल बेहाल है। दिहाड़ी मजदूरों की हालत और भी खस्ता है। खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि के साथ ही बाजार में खाना महंगा होता जा रहा है। अगर वे खुद खाना बनाने की सोचें, तो साग-सब्जियां पहुंच से बाहर होती जा रही हैं और आटा-चावल की न्यूनतम दर 35 रुपये प्रति किलो है। सरकार महंगाई पर काबू पाने के लिए जी-तोड़ प्रयास कर रही है, लेकिन बाजार निम्न मध्यम आय वर्गीय जनता को खुले हाथों से लूट रहा है।
यही वजह है कि गरीब और गरीब होता जा रहा है। समाज में जमाने से चली आ रही अमीर-गरीब के बीच की खाई और चौड़ी होती जा रही है। आम लोग हताश और निराश हैं, उनमें चिंता घर करती जा रही है कि उनका घर-परिवार आखिर चलेगा कैसे? दिलचस्प तथ्य यह है कि जहां खाद्य पदार्थों एवं साग-सब्जियों की कीमतें आसमान छू रही हैं, वहीं किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य नहीं मिल रहा है।उन्हें मिलने वाली कीमत और बाजार में आम उपभोक्ता से वसूली जाने वाली कीमत में एक बड़ा अंतर है, जो सीधे बिचौलियों-व्यापारियों की जेब में जा रहा है।
संजय मग्गू