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दोस्त की जगह खुद मरने को तैयार हुए नूरी

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ईराक में नौवीं शताब्दी में एक बहुत बड़े सूफी संत हुए हैं जिन्हें अबुल हसन नूरी के नाम से जाना जाता है। नूरी शब्द की उत्पत्ति अरबी शब्द नूर से हुई है जिसका अर्थ होता है प्रकाश। नूरी सूफी संत थे और उन्होंने हमेशा लोगों को आपस प्रेम करने और मिलजुलकर रहने की शिक्षा दी। उन दिनों बगदाद का काजी किसी बात पर सूफी संतों से नाराज हो गया। उसने खलीफा से जाकर कहा कि सूफी संत लोग विधर्मियों की तरह हरकत करते हैं।

बात-बेबात नाचते-गाते हैं। नास्तिकों की तरह तर्क करते हैं। इन्हें या तो खत्म कर देना चाहिए या फिर देश निकाला दे देना चाहिए। बगदाद के खलीफा ने काजी के बहकावे में आकर सूफी संतों को मार देने का फरमान जारी किया। नूरी के कई साथियों को जल्लादों ने कत्ल कर दिया। उनके एक दोस्त रकाम को जब काजी के इशारे पर जल्लाद ने कत्ल करना चाहा, तो वह जाकर अपने दोस्त की जगह पर बैठ गए और दोस्त रकाम को वहां से हटा दिया। अबुल हसन नूरी को उसकी जगह पर बैठा देखकर जल्लाद ने कहा कि तुम्हारे कत्ल का आदेश नहीं है।

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तुम यहां क्यों बैठे हो। तब नूरी ने कहा कि हमारे यहां किसी व्यक्ति की जगह अपना बलिदान देने से बढ़कर कोई दूसरा उत्तम काम हो ही नहीं सकता है। जल्लाद ने यह बात जाकर खलीफा और काजी को बताई, तो दोनों वहां पहुंचे। खलीफा ने काजी से पूछा कि इनके बारे में शरीयत का कानून क्या कहता है? शरीयत में कुछ इस बारे में लिखा नहीं था, तो वह चुप रह गया। इस पर खलीफा ने कहा कि यह लोग तो बहुत अच्छे हैं जो दूसरे की जगह पर अपनी जान देने को तैयार रहते हैं। इस पर काजी ने कहा कि मैं फतवा देता हूं कि सूफी संतों से बढ़कर पूरी दुनिया में कोई धार्मिक नहीं है।

Ashok Mishra

-अशोक मिश्र

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