जमीन दिनोंदिन महंगी होती जा रही है। जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है, जमीन पर इंसानों का घनत्व बढ़ता जा रहा है। इन दिनों तो एक बात लोग हंसी-मजाक में कहते हुए पाए जाते हैं कि किसी के पास एक बीघा जमीन यदि कहीं घने जंगल के बीच है, तो वह एक दिन सोने के भाव बिकेगी, भले ही आज उसकी कोई कीमत न हो। यही हाल लगभग दुनिया के हर हिस्से में होता जा रहा है। हरियाणा में भी जमीन की कीमतें आसमान छू रही हैं। बिल्डर्स औने-पौने दामों में किसानों और गरीबों की जमीनें खरीदकर सोने के भाव दुकान और मकान बनाकर बेच रहे हैं। कुछ लोगों ने तो सरकारी कर्मचारियों से मिलीभगत करके सरकारी जमीनों पर कब्जा करना शुरू कर दिया है। एक दिन पहले ही सरकार की सरप्लस जमीनों को अपने नाम कराने के रैकेट का पर्दाफाश हुआ है।
इसमें कुछ सेवानिवृत्त और कुछ कार्यरत कर्मचारियों की साठगांठ भी सामने आई है। सरकारी रिकार्ड बताता है कि राजा भगवंत सिंह की पंचकूला के सात गांवों में 1396 एकड़ जमीन थी। इन गांवों के नाम बीड़ बाबूपुर, बीड़ फिरोजड़ी, बहरेली, संगराणा, बरवाला, जलौली और फतेहपुर वीरान हैं। जब देश आजाद हुआ था, तब राजाओं, महाराजाओं और सामंतों की सीमा से अधिक जमीनों को सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया था। ये ऐसी जमीनें थीं जिसको खरीदा या बेचा नहीं जा सकता था। इन जमीनों की मलकीयत सरकार के पास थी।
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सन 1953 और 1972 एक्ट के तहत रियासतों से अधिगृहीत की गई थीं। लेकिन कुछ दिन पहले लोगों ने कुछ सेवानिवृत्त अधिकारियों ने सेवारत अधिकारियों की मदद से इन जमीनों को दो रजिस्ट्री पांच करोड़ 26 लाख रुपये में अपने और अपने परिवार के नाम पर करा ली। लेकिन अब प्रदेश सरकार ने प्रदेश की उन सभी सरप्लस जमीनों का ब्यौरा जुटाना शुरू किया, तो मामले का खुलासा हुआ। सरकार ने अनधिकृत रूप से सरकारी जमीनों पर कब्जा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है। जीजा-साली केनाम पर की गई रजिस्ट्री का इंतकाल नहीं चढ़ पाया था।
साढ़े दस करोड़ में अपने नाम कराई गई जमीन की वास्तविक कीमत 150 करोड़ रुपये बताई जा रही है। कुछ दिन पहले ही सरकार के फर्जी पत्र के आधार पर भी पांच सौ करोड़ रुपये की जमीनों को हथियाने का मामला चर्चा में आया था। जब इस फर्जी पत्र का खुलासा हुआ तो आनन-फानन सरकारी मशीनरी सक्रिय हुई और उसने आरोपी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई की। यदि पूरे प्रदेश के आधार पर बात की जाए, तो हजारों एकड़ जमीनों पर लोगों ने अवैध कब्जे कर रखे हैं। किसी ने घर बना लिया है, तो किसी ने दुकान। सरकार इन जमीनों को छुड़ाने के लिए कचहरियों के चक्कर लगा रही है।
-संजय मग्गू
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