राजेंद्र बाबू ने बदल दिया युवक का मन
अशोक मिश्र
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद अपनी ईमानदारी और साफ बोलने के लिए काफी प्रसिद्ध थे। वह भारत के पहले राष्ट्रपति भी थे। संविधान निर्माण में उनका बहुत बड़ा योगदान था। वह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। महात्मा गांधी की नीतियों पर उनको बहुत विश्वास था। यही वजह है कि महात्मा गांधी उन्हें बहुत मानते थे। उनकी गिनती कांग्रेस के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में होती है। राजेंद्र प्रसाद का जन्म बिहार के सीवान जिले के जीरादेई नामक गांव में 3 दिसंबर 1884 को हुआ था। इनके पिता संस्कृत और फारसी के विद्वान थे। राजेंद्र बाबू पढ़ने लिखने में काफी होशियार थे। उनका उन दिनों की परिपाटी के अनुसार तेरह साल की उम्र में ही विवाह हो गया था। सन 1915 में उन्होंने स्वर्ण पदक के साथ एलएलएम की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने विधि में ही डॉक्ट्ररेट की डिग्री हासिल की। बात उन दिनों की है जब वे बिहार में वकालत रहे थे। उनके पास एक युवक आया। उसकी राजेंद्र बाबू के किसी सिफारिश भी की थी और राजेंद्र बाबू को खत भी लिखा था। वह चाहते थे कि इस युवक का मुकदमा राजेंद्र प्रसाद लड़ें। राजेंद्र बाबू ने उस युवक से सारा कागजात लिया और उसका गहराई से अध्ययन किया, तो पता चला कि उस युवक ने जाली कागजात बनाकर किसी विधवा की जमीन अपने नाम करा ली है। उस विधवा ने उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया था। इसे देखकर राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि इस जमीन की असली मालकिन तो वह विधवा है। उसकी जमीन हड़पने से तुम्हें बहुत बड़ा पाप लगेगा। उस हाय तुम्हें चैन से बैठने नहीं देगी। यह सुनकर वह युवक काफी लज्जित हो गया। उसने उस कागजात तो तत्काल फाड़ा और फेंक दिया। वह बोला कि अब मैं जीवन में कभी ऐसा नहीं करूंगा, बल्कि उस महिला की मदद करूंगा।
अशोक मिश्र