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कॉमेडी के नाम पर अश्लीलता-फूहड़ता का कारोबार

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संजय मग्गू
यूट्यूबर और कॉमेडियन समय रैना के शो ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ को लेकर विवाद अब अदालत की चौखट पर पहुंच चुका है। यूट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया की माता-पिता के निजी संबंधों पर की गई टिप्पणी को लेकर लोगों में काफी रोष है। कॉमेडियन समय रैना के शो ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ को लेकर लोगों का यह रोष कतई नाजायज नहीं है। देश में स्टैंडअप कॉमेडी के नाम पर किसी को भी इस तरह गंदगी फैलाने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। दुनिया जानती है कि जब एक युवक और युवती विवाह के बंधन में बंधते हैं तो बंद कमरे में क्या करते हैं। लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं है कि खुलेआम सड़क, पार्कया भीड़भाड़ वाली जगहों पर वही सब करने लगें, जो बंद कमरे में किया जाता है। जब मानव समाज का विकास हो रहा था, तब मनुष्य निस्संदेह नग्न ही रहा करता रहा होगा। तब श्लील और अश्लील के कोई मायने नहीं रहें होंगे। इंसान को छोड़कर बाकी सभी जानवर आज भी नंगे रहते हैं, लेकिन इन जानवरों को अश्लील नहीं माना जाता है क्योंकि यह सभ्य समाज में नहीं रहते हैं। प्रकृति ने इन्हें जैसे पैदा किया है, वह वैसे ही रहते हैं। जब समाज सभ्य हुआ तो उसने कुछ नियम-कायदे बनाए। इन नियमों का उल्लंघन करने पर सजा या जुर्माने का प्रावधान किया गया। श्लील और अश्लील के बीच बहुत मामूली सा फर्क होता है। कई पेंटिंग्स में स्त्री या पुरुष पूर्ण नग्न होते हैं, लेकिन अश्लील कतई नहीं लगते हैं। यही कला है। यदि कॉमेडियन यह समझते हैं कि गाली-गलौज या सेक्स की बात किए बिना हास्य नहीं पैदा किया जा सकता है, तो यह उनकी भूल है। वैसे देश के ज्यादातर कॉमेडियन पिछले कुछ सालों से कॉमेडी के नाम पर फूहड़ता और अश्लीलता ही परोस रहे हैं और लोग उस पर तालियां बजा रहे हैं। खुश हो रहे हैं। ओटीटी पर परोसी जाने वाली फिल्में और वेबसीरीज ज्यादातर फूहड़ और अश्लील ही होते हैं। आज जब मोबाइल और इंटरनेट ने बच्चों के लिए भी सभी दरवाजे खोल दिए हैं, तो ऐसी स्थिति में अश्लील कंटेंट उन पर काफी बुरा प्रभाव डालते हैं। वैसे यह सही है कि पिछले सैकड़ों सालों से समाज में खुलेआम गालियां दी जा रही हैं। मां-बहन के साथ अंतरंग संबंध कायम करने वाली गालियां बड़े बूढ़े से लेकर छोटे-छोटे बच्चे तक धारा प्रवाह दे रहे हैं। लेकिन इन गालियां का समर्थन तो नहीं किया जा सकता है। अक्सर यह देखा जाता है कि जिन घरों में बड़े-बूढ़े गालियां देते हैं, उन घरों के बच्चे भी बात-बात में गालियां देते हैं क्योंकि जब वह नासमझ होते हैं, तो उन्हें लगता है कि यह कोई अच्छी बात होगी, तभी तो उनके पिता, मां, चाचा-ताया आदि ऐसी बातें करते हैं। समाज ने श्लील और अश्लील की सीमा रेखा खींची है, उसका ध्यान तो रखना ही होगा। कुछ लोग कह सकते हैं कि फिर इससे पहले जिन लोगों ने अश्लील कंटेंट परोसा, उनके खिलाफ कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं हुई? तो भइया, तब शुरुआत नहीं हुई, तो अब से सही!

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