संत एकनाथ महाराष्ट्र के बहुत प्रसिद्ध संतों में एक थे। संत एकनाथ संत ज्ञानेश्वर की परंपार में आते हैं। उनका जन्म पैठण में संत भानुदास के कुल में हुआ था। एकनाथ संत भानुदास के पौत्र थे। देवगढ़ के हाकिम जनार्दन स्वामी की ब्रह्मनिष्ठा, विद्वत्ता, सदाचार और भक्ति से प्रभावित संत एकनाथ उनके शिष्य हो गए। अपने गुरु की ही आज्ञा से उन्होंने वैराग्य की जगह गृहस्थ आश्रम स्वीकार किया। एक बार की बात है। कुछ लोग उनके दर्शन और सत्संग के लिए संत एकनाथ के पास आए। वे कहीं दूर से आए थे।
संत एकनाथ ने उनके साथ धर्म चर्चा की और उन्हें लोककल्याण के मार्ग बताए। शाम को एकनाथ ने सबको यथोचित भोजन कराया और अपने ही घर में उनके सोने की व्यवस्था कर दी। संयोग से उस रात चोरों ने संत एकनाथ के घर पर धावा बोला। उनके घर में जितने बरतन, कीमती कपड़े, जेवर थे, उनको एक चादर में बांधा। चोरों ने उस दिन एकनाथ के घर आए लोगों के भी बर्तन और रुपये-पैसे चुरा लिए। इसी बीच बरतन खड़कने से एकनाथ की नींद खुल गई।
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उन्होंने सारा माजरा भांप लिया। तो उन्होंने हल्ला मचाने की जगह घर में रखी भगवान की मूर्ति के आगे हाथ जोड़कर बैठ गए। थोड़ी देर बाद चोर जब फिर गठरी के पास पहुंचे, तो एकनाथ को देखकर चौंक गए। एकनाथ ने अपने हाथ में पहनी सोने की अंगूठी निकालकर चोरों को देते हुए कहा कि मेरा जो भी सामान है, वह ले जाओ, लेकिन सत्संग के लिए आए लोगों के सामान छोड़ दो। यदि आज उनका सामान चोरी हो गया, तो उनका सत्संग से विश्वास उठ जाएगा। लोग सत्संग करना छोड़ देंगे। वैसे भी यह लोग बहुत दूर से आए हैं। यह सुनकर चोर बहुत शर्मिंदा हुए और गठरी छोड़कर खाली हाथ घर से चले गए।
-अशोक मिश्र
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