संजय मग्गू
क्विक डिलीवरी के ट्रेंड ने स्थानीय किराना स्टोर्स का भविष्य खतरे में डाल दिया है। जिस तरह शहरी आबादी बढ़ रही है, उससे कहीं ज्यादा अनुपात में क्विक कॉमर्स बढ़ रहा है। स्थानीय बाजार को दस-बारह साल में शॉपिंग मॉल कल्चर ने काफी नुकसान पहुंचाया। जिन गांवों के पांच-छह किमी के दायरे में मॉल्स खुले, उन्होंने ग्रामीण बाजारों के ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित किया। गांवों के लोग भी स्थानीय बाजार की जगह मॉल्स में खरीदारी करने लगे। ग्रामीण युवाओं की एक अच्छी खासी आबादी अब भी स्थानीय किराना स्टोर्स या कपड़ों की दुकान की जगह मॉल्स में खरीदारी करना पसंद करने लगी है। लेकिन शहरी इलाकों में तो शॉपिंग मॉल्स को भी क्विक डिलीवरी के ट्रेंड ने नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है। हालांकि ज्यादातर मॉल्स ने भी क्विक डिलीवरी मॉडल अपना लिया है। हमारे देश में ब्लिंकिट, स्विगी इंस्टामार्ट, जेप्टो जैसी कंपनियों ने शहरी आबादी खासकर युवाओं को बस दस पंद्रह मिनट में उनकी जरूरत का सामान पहुंचाने का जिम्मा लेकर स्थानीय किराना स्टोर्स का स्वरूप ही बदल दिया है। धीरे-धीरे किराना स्टोर्स मालिक अपना कारोबार समेटने लगे हैं। एक आंकड़े के मुताबिक इसी साल यानी 2024 में ब्लिंकिट, जेप्टो जैसी तमाम कंपनियों ने 3.3 अरब डॉलर का कारोबार किया है। उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले पांच साल में यह कारोबार दस अरब डॉलर से भी ज्यादा हो जाने का अनुमान है। इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन की रिपोर्ट बताती है कि जेड जेन यानी 15 से 45 साल की उम्र वाले उपभोक्ताओं की वजह से कुल खपत का 45 प्रतिशत हिस्सा दो दिन बाद आने वाले नए साल में बढ़ जाएगा। क्विक डिलीवरी का सबसे बड़ा कारण यह है कि मोबाइल और इंटरनेट का सबकी पहुंच में होना। इंटरनेट पर कहां और कौन सा बाजार है, इसकी जानकारी सहज उपलब्ध है। क्विक कंपनियों ने भी लोगों तक अपनी पहुंच बनाने के लिए कई तरह के हथकंडे अपना रखे हैं। हर दो-तीन किमी के दायरे में अपने स्टोर या छोटा मोटा गोदाम बनाकर सारे सामान रख छोड़े हैं। जैसे ही कोई आर्डर आता है, उस एरिया के स्टोर से मंगाई गई वस्तु लेकर डिलीवरी ब्याय चल देता है और पंद्रह मिनट से भी कम समय में सामान ग्राहक के पास पहुंच जाता है। गांवों और कस्बों के नजदीक खुलने वाली दुकानों ने सबसे पहले हाट और मेलों पर कुठाराघात किया। जब सभी दिन दुकानें खुली हों, तो हाट और मेलों का सात दिन तक कौन इंतजार करे। इसके बाद शॉपिंग माल्स ने दुकानदारों को झटका दिया। अब शॉपिंग मॉल्स और स्थानीय किराना और अन्य सामानों के स्टोर्स को झटका देने के क्विक कॉमर्स तैयार है। ई-कॉमर्स ने ही एक तरह से रूप बदलकर क्विक कॉमर्स का नया नाम धारण कर लिया है। यह बदलते भारत की एक नई तस्वीर है। सन 2011 में 35 करोड़ की शहरी आबादी 2030 तक 60 करोड़ होने की उम्मीद है। यही शहरी आबादी क्विक डिलीवरी का आधार है।
क्विक डिलीवरी सिस्टम ने बिगाड़ा स्थानीय बाजार का चेहरा
- Advertisement -
- Advertisement -
RELATED ARTICLES