फ्रांस में एक बहुत बड़े संगीतकार थे। उनकी प्रसिद्धि दूसरे देशों मे भी काफी थी। वे अपने छात्र-छात्राओं को संगीत की शिक्षा दिया करते थे। उनके पास बहुत दूर-दूर से युवा संगीत सीखने आया करते थे। वे चाहते थे कि संगीत का प्रचार-प्रसार खूब हो। यही वजह है कि वे ज्यादा से ज्यादा लोगों को संगीत की शिक्षा देना चाहते थे। एक दिन की बात है। एक शिष्या उनके पास उदास होकर आई और बोली, गुरुदेव! मैं जब भी किसी सभा या समारोह में गायन प्रस्तुत करने जाती हूं, तो कांपने लगती हूं। मैं सुंदर नहीं हूं। यही सोचकर मैं मायूस हो जाती हूं। जबकि मैं जब घर पर अभ्यास करती हूं या घर में गाती हूं, तो मुझे कोई दिक्कत नहीं होती है। लोग मेरी आवाज की तारीफ करते हैं। मेरा गायन सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
लेकिन किसी समारोह में गाते समय मन में यही चलता रहता है कि मैं सुंदर नहीं हूं। लोग मेरे चेहरे को देखकर मेरा गायन क्यों सुनेंगे। यह सुनकर संगीतकार ने कहा कि तुम अपने मन से यह भय निकाल दो कि लोग तुम्हारी असुंदरता के कारण गायन नहीं सुनेंगे। गायन यदि मधुर हो, तो लोग संगीतकार की सुंदरता या कुरुपता की ओर ध्यान नहीं देते हैं। इसके बावजूद यदि तुम चाहो, तो घर पर किसी दर्पण के सामने गाओ और यह सोचकर गाओ कि तुम बहुत सुंदर हो।
फिर किसी कार्यक्रम में अपना गीत प्रस्तुत करो। बस, अपना आत्म विश्वास बनाए रखो। उस लड़की ने कुछ दिन ऐसा ही किया। कुछ दिन बाद लड़की मुस्कुराती हुई संगीतकार के पास आई और बोली कि मैंने आपकी तरकीब आजमाई थी। अब मुझे कोई परेशानी नहीं होती है। मैं पूरे आत्म विश्वास के साथ गाती हूं। लोग मेरा गाना सुनकर मंत्र मुग्ध हो जाते हैं।
अशोक मिश्र