परिश्रम और संतोष दोनों ऐसे गुण हैं जिसकी वजह से कोई भी व्यक्ति न तो दरिद्र रह सकता है और न ही दुखी। कुछ लोग न्यूनतम सुख-सुविधाओं में भी अपना जीवन बहुत अच्छी तरह से गुजार लेते हैं। कुछ लोग तो तमाम सुख-सुविधाएं होने के बावजूद सुखी नहीं रहते हैं। एक राज्य का राजा बहुत बीमार था। राजा के इलाज के लिए कई वैद्य आए, लेकिन उनको ठीक नहीं कर पाया। एक दरबारी ने एक दिन कहा कि यदि इजाजत हो, तो महाराज मैं निवेदन करूं। राजा की अनुमति मिलने के बाद उसने कहा कि यदि महाराज को किसी सुखी इंसान की कमीज पहना दी जाए, तो महाराज ठीक हो सकते हैं।
बस, फिरक्या था? तमाम अधिकारी पूरे राज्य में सुखी व्यक्ति की कमीज खोजने निकल पड़े। पूरे राज्य में अधिकारी खोजते फिरे, लेकिन उसे कोई भी सुखी व्यक्ति नहीं मिला। जिससे मिलते वह कोई न कोई दुख बता देता था। थक हारकर वे जब लौट रहे थे, तो उन्होंने देखा कि एक किसान जेठ की दोपहर में अपना खेत जोत रहा है। वह कुछ गुनगुनाता था और जोर का ठहाका लगाता था। अधिकारी उस किसान के पास पहुंचे और कहा कि क्या तुम सबसे सुखी व्यक्ति हो? उस किसान ने कहा कि हां, मैं सुखी व्यक्ति हूं। इस पर राज्य अधिकारी ने कहा कि मुझे राजा के इलाज के लिए आपकी कमीज चाहिए। इस पर किसान ने कहा कि मेरे पर तो कमीज तक नहीं है। इतना कहकर वह हंस पड़ा। वहां से लौटकर अधिकारी ने उस किसान की बात राजा को बताई। यह सुनते ही राजा उठकर बैठ गया और बोला, मैं समझ गया। सुख के सारे साधन होने के बावजूद सुखी नहीं हुआ जा सकता है।
अशोक मिश्र