हरियाणा में चुनाव प्रचार खत्म होने में बस चार दिन शेष रह गए हैं। 23 मई की शाम तक ही प्रत्याशी प्रचार कर सकेंगे। ऐसी हालत में सभी दलों और निर्दलीयों ने अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार चुनाव प्रचार तेज कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रदेश में चुनावी रैलियां कर चुके हैं। हां, इस बीच कांग्रेस का कोई बड़ा नेता जरूर नहीं आया है। पांचवें चरण का मतदान खत्म होने के बाद अब उम्मीद हो चली है कि शायद कांग्रेस हाईकमान अब हरियाणा पर भी ध्यान देगा। प्रदेश में चुनाव प्रचार के लिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के आने की उम्मीद है। अभी तक तो अपने स्तर पर पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, प्रदेश अध्यक्ष चौधरी उदयभान, कुमारी सैलजा आदि ही चुनाव प्रचार कर रहे हैं। इस बार प्रदेश में किसी खास पार्टी के पक्ष में कोई लहर नहीं दिखाई दे रही है।
भाजपा उम्मीदवारों को मोदी मैजिक का सहारा है। एंटी इंकमबैंसी का प्रभाव कम करने के लिए बिना पर्ची खर्ची की भर्तियों, स्कूलों को उन्नत करने, कई तरह की कल्याणकारी योजनाओं को शुरू करने आदि को मुद्दा बनाकर पेश करने की कोशिश की जा रही है। प्रदेश में राम मंदिर का मुद्दा उतना प्रभावी नहीं दिखाई दे रहा है। हालांकि जब राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के समय प्रदेश के लोगों में काफी उत्साह दिखाई दिया था। एक बार ऐसा लगा था कि चुनाव के दौरान प्राण प्रतिष्ठा का मुद्दा काफी प्रभावी रहेगा, लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए, लोगों के बीच से मुद्दा ही गायब होता चला गया। प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल और मुख्यमंत्री नायब सैनी ने चुनाव प्रचार का मोर्चा संभाल रखा है।
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इन दोनों की जोड़ी हर संभव प्रयास कर रही है कि भाजपा के पक्ष में बयार बहे, लेकिन बयार जैसी स्थिति बन नहीं पा रही है। जजपा और इनेलो की जो वर्तमान स्थिति है, उसको देखते हुए यही कहा जा सकता है कि ये पार्टियां भाजपा और कांग्रेस के वोटों में सेंध लगा सकती हैं, लेकिन जीतने की स्थिति में नहीं हैं।
प्रदेश में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस में ही है। अपनी-अपनी जीत के दावे तो सभी पार्टियां कर रही हैं, लेकिन पिछले कुछ दिनों से दल बदल करने वालों ने राजनीतिक दलों का समीकरण बिगाड़ रखा है। वैसे ज्यादातर दलबदलुओं ने कांग्रेस का हाथ थामा है, इससे कुछ सीटों पर कांग्रेस की स्थिति मजबूत दिख रही है, लेकिन असलियत क्या है, इसका पता तो चार जून को ही चलेगा। इसके बावजूद यह कहा जा सकता है कि इस बार भाजपा के लिए पिछला रिकार्ड कायम कर पाना आसान नहीं है। प्रदेश की दसों सीटों पर जीत हासिल करना, कठिन लग रहा है।
-संजय मग्गू
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