19 मई को इंडिया गठबंधन की फूलपुर जनसभा के दौरान जो कुछ भी हुआ, वह कतई नहीं होना चाहिए था। याद कीजिए, ठीक इसी तरह की लापरवाही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तमिलनाडु के श्रीपेरुंबुदूर में बरती थी। वह भी मई का महीना था और तारीख 21 मई की थी। साल 1991 की 21 मई को देश ने एक होनहार प्रधानमंत्री को खो दिया था। श्रीपेरुंबुदूर में इसी तरह प्रशंसकों की भीड़ उमड़ी थी और राजीव गांधी सुरक्षा घेरा तोड़कर अपने प्रशंसकों से मिलने चले गए थे। उन्हें क्या पता था कि वह अपने प्रशंसकों से नहीं मौत से मिलने जा रहे हैं। उन दिनों पूरे देश में चुनाव चल रहे थे। राजीव गांधी तमिलनाडु में चुनाव प्रचार के लिए गए थे। रविवार को प्रयागराज के फूलपुर में जिस तरह भीड़ बेकाबू हुई थी, वह पूरी तरह प्रशासन की लापरवाही को दर्शाती है। माना कि राहुल गांधी और अखिलेश यादव को देखकर उनके प्रशंसक बेकाबू हो गए थे।
जनसभा में आए युवा अपने प्रिय नेता को पास से देखना चाहते थे। इसलिए बेरिकेडिंग तोड़ दी। चलो यह भी मान लिया कि उन समर्थकों का कोई गलत इरादा नहीं था। लेकिन यदि किसी सिरफिरे का होता तो? बस इस ‘तो’ का जवाब किसी के पास नहीं है। फूलपुर की जनसभा में उम्मीद से कहीं ज्यादा भीड़ आ गई थी। मंच से एक किमी दूर तक भीड़ ही भीड़ थी। ऐसा सपा के स्थानीय नेता दावा करते हैं। कुछ लोग इसे इंडिया गठबंधन की बढ़ती लोकप्रियता से जोड़ रहे हैं। प्रयागराज के कांग्रेस जिलाध्यक्ष सुरेश यादव इसे सुरक्षा व्यवस्था में भारी चूक मानते हैं, लेकिन पुलिस में शिकायत दर्ज कराने को तैयार नहीं हैं। क्यों? इससे समर्थकों के नाराज हो जाने का खतरा है। जो उत्साह और जुनून लोगों में इंडिया गठबंधन के लिए पैदा हुआ है, उस पर मामला दर्ज कराने से बुरा असर पड़ सकता है।
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इस सुरक्षा चूक को समर्थकों और चहेतों की आड़ में छिपाने की प्रवृत्ति राहुल गांधी, अखिलेश यादव जैसे कई नेताओं पर भारी पड़ सकती है। जो लोग सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर होते हैं, उनकी सुरक्षा व्यवस्था चाकचौबंद होती है। उनके आसपास कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता है, लेकिन जो लोग किसी संवैधानिक पदों पर नहीं होते हैं, उनको स्वाभाविक तौर पर उस तरह की सुरक्षा हासिल नहीं होती है, जैसी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री को हासिल होती है।
इस बात से भी कोई इनकार नहीं कर सकता है कि रविवार को ही इंडिया गठबंधन के सभा स्थल से ही कुछ दूरी पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी चुनावी सभा थी। ज्यादातर पुलिस महकमा वहां मौजूद था। यह अच्छी बात है कि पुलिस महकमे ने भाजपा की रैलियों और जनसभाओं पर कड़ी निगरानी रखी, लेकिन विपक्षी दलों के नेताओं पर भी बराबर ध्यान रखना प्रशासन की जिम्मेदारी है। अति उत्साह में नेता गलती कर सकते हैं, लेकिन स्थानीय प्रशासन को ऐसे मामलों का चुस्त दुरुस्त रहना चाहिए। वैसे भी समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों पर स्व. मुलायम सिंह यादव के दौर से ही अराजक होने का आरोप लगता रहा है।
-संजय मग्गू
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