हमारे देश में माना जाता है कि जोड़ियां ऊपर से तय होती हैं। सदियों तक हिंदू समाज में शादी से पहले दूल्हा-दुल्हन एक दूसरे का चेहरा नहीं देख पाते थे। इसके बावजूद तलाक या परित्याग की घटनाएं नगण्य होती थीं। अब परिदृश्य बदल गया है। शादी से पहले दूल्हा-दुल्हन न केवल एक दूसरे मिलजुल लेते हैं,बल्कि बातचीत भी करते रहते हैं। इसके बावजूद तलाक, परित्याग या आपसी मनमुटाव की घटनाएं बढ़ रही हैं। पति-पत्नी में मतभेद बढ़ते जा रहे हैं। इसके पीछे न केवल जीवन शैली है, बल्कि हमारी सोच का संकुचित दायरा भी है। कई बारे देखने में आता है कि पति-पत्नी एक ही बात या मुद्दे को लेकर लड़ते-झगड़ते रहते हैं। कई दिनों तक उसी मुद्दे पर बहस होती है और नतीजा कुछ नहीं निकलता है।
यदि ऐसे मामले में थोड़ा धैर्य से काम लिया जाए, समस्या की जड़ तक जाने का प्रयास किया जाए, तो मामला सुलझ सकता है, लेकिन आमतौर पर ऐसा होता नहीं है। यदि मनोविश्लेषकों की भाषा में बात की जाए, तो एक ही जीवन शैली में जीते-जीते अब आदमी ऊब का शिकार होने लगा है। रोज का बस एक ही रुटीन, जीवन में कोई बदलाव नहीं, कोई रोमांच नहीं, को रोमांस नहीं। बस, कोल्हू के बैल की तरह एक ही घेरे में घूमते जा रहे हैं। ऐसी स्थितियां हमारे जीवन में एक ऊब पैदा कर रही हैं। नतीजा यह होता है कि मन में एक झल्लाहट पैदा होती है जिसके परिणाम स्वरूप दांपत्य जीवन में टकराव पैदा हो रहा है। इस स्थिति से बचने के लिए जरूरी है, थोड़ा सा अपने जीवन में बदलाव लाएं। पति-पत्नी शाम को सब्जियां और घर का राशन लाने के लिए बाजार जाएं। समय निकालकर दोनों एक दूसरे के साथ घूमें टहलें। रोमांटिक बातचीत करें।
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अगर आप गलत हैं, तो अपने जीवन साथी के सामने गलती स्वीकार करें। जीवन में कोई भी मतभेद ऐसा नहीं होता है जिसको सुलझाया न जा सके। बस, मन साफ और जीवन साथी के प्रति सहिष्णु होना चाहिए। ऐसा भी नहीं है कि दांपत्य जीवन में हमेशा आप नतमस्तक रहें। यदि आपको लगता है कि जीवन साथी गलत कर रहा है, तो नाराज भी होना चाहिए। नाराजगी व्यक्त करने के बाद आप सामान्य व्यवहार करें। कुछ लोग अपने जीवन साथी के प्रति नाराजगी व्यक्त करने के बाद उसको रस्सी की तरह पकड़ कर बैठ जाते हैं। ऐसा करना गलत है।
कभी कभार गुस्सैल स्वभाव दर्शाने के बाद संबंध में और मधुरता आती है, ऐसा देखा गया है। अगर किसी बात को लेकर कोई विवाद है, तो पूरी दृढ़ता के साथ अपनी बात रखें। इसका यह कतई मतलब नहीं है कि आप अपने साथी की बात ही न सुनें। साथी को भी अपनी बात रखने का भरपूर मौका देना चाहिए। तभी विवाद को सुलझाया जा सकता है। अपनी ही बात पर दृढ़ रहने से मामला सुलझने की जगह और उलझ जाता है। आपको एक बात अच्छी तरह से गांठ बांध लेनी चाहिए कि यह आपका दांपत्य जीवन है, कोई कोर्टरूम नहीं।
-संजय मग्गू
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