संजय मग्गू
इसी साल जुलाई में जब सुधारवादी नेता मसूद पजशकियान प्रचंड मतों से ईरान के राष्ट्रपति पद का चुनाव जीता था, तो लगा था कि ईरान बदलेगा। ईरान में महिलाओं की स्थिति में बदलाव आएगा। पजशकियान ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान वायदा भी किया था, लेकिन कुछ नहीं बदला। कल यानी 02 नवंबर से ईरानी यूनिवर्सिटी की एक छात्रा का पूरी दुनिया में वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें वह अंडरगारमेंट में यूनिवर्सिटी कैंपस में बैठी हुई दिखाई दे रही है और यूनिवर्सिटी के सुरक्षा गार्ड उससे बात कर रहे हैं। खबरों के मुताबिक उस लड़की को गिरफ्तार कर लिया गया है। वह जिंदा है या मार दी गई, कोई पता नहीं है। उस लड़की ने ईरान में हिजाब पहनने की अनिवार्यता के नियम के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने के लिए ऐसा किया है। ऐसा बताया जा रहा है। ईरान में छोटी-छोटी बच्चियों से लेकर बुजुर्ग महिलाओं तक को हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया है। यदि उनका चेहरा, बाल या शरीर का कोई हिस्सा खुला दिखाई दे, तो इसके लिए ईरानी शासन ने जुर्माना या सजा अथवा दोनों तय कर रखा है। भारतीय मुद्रा में 35 हजार रुपये तक जुर्माना किया जा सकता है। हिजाब पहनने की अनिवार्यता के खिलाफ ईरान में बहुत पहले से ही विरोध प्रदर्शन होते चले आ रहे हैं। 17 सिंतबर 2022 में महसा अमीनी की मौत के बाद यह विरोध प्रदर्शन ईरान में काफी तेज हो चुका था। महसा अमीनी के पक्ष में हिजाब उतारकर सड़कों पर आ जाने वाली महिलाओं और पुरुषों को ईरान की मॉरल पुलिस ने बड़ी संख्या में गिरफ्तार किए। इस मामले में 17 सितंबर 2022 के बाद पांच सौ से ज्यादा लोगों की मौत मॉरल पुलिस की टार्चर की वजह से हुई थी। 17 हजार से अधिक लोग जेलों में डाल दिए गए थे जिनका आज तक कोई पता नहीं है। ऐसा नहीं है कि ईरान में हमेशा से ही ऐसा होता रहा है। सन 1989 में कथित इस्लामी क्रांति के बाद ही महिलाओं के लिए ड्रेस कोड लागू किए गए। सन 1979 से पहले ईरान में शाह पहलवी का शासन था और महिलाएं लोकतांत्रिक देशों की तरह स्वतंत्र थीं। वे शिक्षा, पहनावा, धार्मिक मामलों और नौकरी करने जैसे सभी मामलों में पूरी तरह स्वतंत्र थीं। ईरान का समाज काफी प्रगतिशील था। 8 जनवरी 1936 को रजा शाह ने कश्फ-ए-हिजाब लागू किया। यानी अगर कोई महिला हिजाब पहनेगी तो पुलिस उसे उतार देगी। 1941 में शाह रजा के बेटे मोहम्मद रजा ने शासन संभाला और कश्फ-ए-हिजाब पर रोक लगा दी। उन्होंने महिलाओं को अपनी पसंद की ड्रेस पहनने की अनुमति दी। 1963 में मोहम्मद रजा शाह ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया और संसद के लिए महिलाएं भी चुनी जानें लगीं। 1967 में ईरान के पर्सनल लॉ में भी सुधार किया गया जिसमें महिलाओं को बराबरी के हक मिला। लेकिन 1979 में शिया धार्मिक नेता अयातुल्लाह रुहोल्लाह खामनेई ने इस्लाम के नाम पर सब कुछ बदल दिया। अब हालत यह है कि 45 साल से ईरान महिलाओं के लिए जहन्नुम बन चुका है।
संजय मग्गू