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एआई का दुष्परिणाम अभी न जाने कितनी बच्चियां भोगेंगी

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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई की तारीफ में कसीदे काढ़ते हैं, वे लोग समझ लें कि एआई को प्रमोट करना किसी भस्मासुर को प्रमोट करने जैसा है। इस कृत्रिम मेधा के फायदे कम नहीं होंगे, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता है, लेकिन यदि कोई सिरफिरा इसके दुरुपयोग पर उतारू हो जाए तो दो देशों में युद्ध करा सकता है, देश में जातीय या धार्मिक दंगा करा सकता है, जातीय उन्माद पैदा कर सकता है। कहने का मतलब यह है कि वह कुछ भी ऐसा कर सकता है, जो हमारे देश, समाज और सभ्यता-संस्कृति के खिलाफ हो सकता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का खामियाजा मध्य प्रदेश के सीधी जिले की सात आदिवासी लड़कियां दुष्कर्म के रूप में भुगत रही हैं। ‘हेल्लो, मैं अर्चना मैम बोल रही हूं’ मोबाइल फोन पर यह सुनने के बाद लड़कियों ने सपने में नहीं सोचा होगा कि कोई बहुरुपिया वाइस ऐप के माध्यम से आवाज बदलकर उनकी जिंदगी नर्क बनाने वाला है।

अपराध को अंजाम देने वाले सभी आरोपी आपस में रिश्तेदार हैं। इनमें से एक आरोपी लवकुश प्रजापति उसी स्कूल का छात्र रह चुका है जिस स्कूल की पीड़ित छात्राएं हैं। वह इस बात को अच्छी तरह जानता था कि इन सातों लड़कियों को अर्चना नाम की टीचर पढ़ाती हैं। वाइस ऐप का उपयोग करके ये चारों आरोपी मोबाइल पर अर्चना मैम की आवाज में स्कॉलरशिप के डाक्यूमेंट में गड़बड़ी की बात बताकर अकेले में बुलाते हैं और बलात्कार करते हैं। किसी को बताने पर जान से मारने की धमकी देते हैं जैसा कि ऐसे मामलों में अक्सर होता है। कुछ दिनों बाद इन आदिवासी छात्राओं में से एक हिम्मत जुटाती है और मामले का खुलासा होता है। पुलिस ने आरोपियों के पास से 18 मोबाइल फोन बरामद किए हैं। पुलिस को शक है कि बलात्कार की शिकार सिर्फ ये सात छात्राएं ही नहीं हैं।

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इनकी संख्या बहुत ज्यादा हो सकती है। दरअसल, विज्ञान और तकनीक क्षेत्र में कुछ न कुछ नया आविष्कार होता ही रहता है, लेकिन कुछ आविष्कार मानव समाज के हित में नहीं होते हैं। अब बम बनाने का आविष्कार जिस वैज्ञानिक ने किया होगा, वह इस बात को अच्छी तरह जानता रहा होगा कि इससे मानव समाज का भला नहीं होने वाला है। बम, पिस्तौल, मिसाइलें, तोप, गोला बारूद जैसी न जाने कितने आविष्कार हैं जो किए गए।

इनके आविष्कार के पीछे निश्चित तौर पर तत्कालीन शासकों के अपने हित रहे होंगे। कुछ आविष्कार गलती से हो जाते हैं जैसे प्लास्टिक। यदि प्लास्टिक के दुष्परिणाम के बारे में खोजकर्ता को तनिक भी अंदेशा होता तो शायद वह ऐसी गलती कतई नहीं करता। ठीक यही बात इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डीपफेक जैसे तमाम आविष्कारों पर लागू होती है। हो सकता है कि इनके आविष्कारकों की मंशा पाक साफ रही हो, लेकिन भविष्य में इसके दुरुपयोग की जो आशंकाएं अभी से व्यक्त की जाने लगी हैं, उसको देखते हुए समाज को अभी से डरना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि सरकारें इन पर लगाम लगाने के लिए कठोर नियम लागू करें।

Sanjay Maggu

-संजय मग्गू

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