अब भी समय है। अगर हमने अपनी आदतों और जीवन शैली में बदलाव नहीं किया, तो इसके दुष्परिणाम हमें भुगतने ही होंगे। हमारी भावी पीढ़ी को भी इसकी कीमत चुकानी होगी। वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट की ताजा रिपोर्ट यह साबित कर चुकी है कि पूरी दुनिया की लगभग 17 प्रतिशत आबादी वाले देश भारत में कुल पानी का चार प्रतिशत हिस्सा ही उपलब्ध है। इसके बावजूद हम भारतीयों ने पानी का दुरुपयोग करना बंद नहीं किया है। कुछ लोगों को लगता है कि थोड़ा सा पानी यदि फालतू बह ही गया, तो कौन सी आफत आ जाएगी। हमारे देश के कुछ प्रदेशों में होने वाली पानी की किल्लत उन प्रदेशों के लोग नहीं समझ सकते हैं जिनके यहां पानी की बहुलता है।
हरियाणा के जो इलाके पानी की कमी से जूझ रहे हैं, उन इलाकों की पीड़ा उस इलाके के लोग कैसे समझ सकते हैं जिनके यहां पानी आसानी से उपलब्ध है। हरियाणा के कुल 7287 गांवों में से 3041 गांव पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। इनमें से 1948 गांवों में तो समस्या काफी गंभीर हो गई है। यहां पानी को लेकर लोग काफी परेशान हैं। हमारे प्रदेश के जल का एक बहुत बड़ा हिस्सा सीवेज और औद्योगिक कचरे के रूप में प्रदूषित हो जाता है। हमारे प्रदेश के नीति-निर्धारक यदि एक ऐसा तंत्र विकसित करें कि औद्योगिक कचरे और सीवेज के पानी को शोधित करके उन्हें दोबारा उपयोग के लायक बनाया जा सके, तो स्थितियां थोड़ी बेहतर हो सकती हैं।
यह भी पढ़ें : संत मलिक दीनार ने साफ की गंदगी
इससे नदियां भी प्रदूषित होने से बच जाएंगे। इतना ही नहीं, हमें अपने पुरखों की तरह जल संरक्षण करना होगा, तभी हम पानी की कमी की समस्या से निजात पा सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि हम बरसाती पानी को संचित करें। संरक्षित वर्षा जल हमारे लिए काफी उपयोगी साबित हो सकता है। इसका उपयोग सिंचाई, पशुओं और इंसानों के पेयजल के रूप में हो सकता है। तालाबों और अन्य जगहों पर संचित किए जाने से जलस्तर भी सुधर सकता है।
हमें अपने पुराने तालाबों का उद्धार करना होगा, उनको एक बार फिर से जल संचय लायक बनाना होगा। नए-नए तालाब खुदवाने होंगे। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इसके लिए भारी भरकम रकम भी जारी की थी। प्रदेश के कई जिलों में बड़े-बड़े तालाब खुदवाने की योजनाएं भी बनाई गई थीं। उनके लिए जमीनें तलाशी जा रही थीं। कुछ सरप्लस जमीनों पर भी बड़े तालाब खोदने की इजाजत भी देने के की बात कही गई थी। बरसात के दिनों में यदि अधिक से अधिक वर्षा जल को संचित कर लिया जाए तो इस समस्या से काफी हद तक निजात मिल सकती है। जिस तरह हमारे पर्यावरण में तब्दीली आती जा रही है, उससे निकट भविष्य में भयंकर गरमी पड़ने के आसार दिखाई दे रहे हैं। ऐसी स्थिति में जल संचय ही हमारे पास एकमात्र विकल्प है।
-संजय मग्गू
लेटेस्ट खबरों के लिए क्लिक करें : https://deshrojana.com/