महात्मा बुद्ध ने अहिंसा का संदेश जन-जन को दिया था। उन्होंने लोगों को हमेशा मिल जुलकर रहने और किसी भी तरह के विवाद से दूर रहने का संदेश दिया करते थे। उन्होंने संघ की स्थापना करके धर्म का प्रचार करने के लिए अपने शिष्यों को दूर-दूर तक भेजा। वह लोगों में अहिंसा का प्रचार करते हुए धर्मानुसार जीवन यापन करने की प्रेरणा देते थे। एक दिन उनका शिष्य यशोवर्मन ने आकर महात्मा बुद्ध से कहा कि वह कलिंग जाकर धर्म का प्रचार करना चाहता है। बुद्ध ने कहा कि कलिंग के लोग ईष्यालु और क्रोधी हैं। वे तुम से झगड़ा करेंगे। तुम्हारा वहां जाना उचित नहीं है। इस पर शिष्य ने कहा कि वे झगड़ा ही तो करेंगे? मारेंगे तो नहीं। कलिंग के लोग तो बहुत दयालु हैं। मैं झगड़ा ही नहीं करूंगा।
यह सुनकर बुद्ध बोले कि वे मारपीट भी कर सकते हैं। तुम कलिंग वालों को नहीं जानते हो। यह सुनकर शिष्य ने कहा कि कलिंग वाले सचमुच दयालु हैं। वे मारपीट ही करेंगे, जान से तो नहीं मारेंगे। मैं धर्म के प्रचार के लिए मार खा लूंगा। बुद्ध मन ही मन मुस्कुराए और बोले, वे तुम्हें जान से भी मार सकते हैं। तुम्हारा वहां जाना उचित नहीं है। यशोवर्मन भी अड़ा रहा। उसने कहा कि यदि धर्म का प्रचार करने के लिए जान भी देनी पड़े, तो समझिए कि जीवन सार्थक हो गया। आपने ही तो कहा है कि यदि लोगों की भलाई के लिए जान चली जाए, तो बुरा नहीं है। बुद्ध ने कहा कि तुम सचमुच प्रचार के लिए जाने लायक हो। बौद्ध प्रचारक को सहिष्णु, क्षमाशील और दयालु होना चाहिए। तुममें यह तीनों गुण हैं। इसके बाद महात्मा बुद्ध ने यशोवर्मन को धर्म प्रचार के लिए कलिंग जाने की अनुमति दे दी।
अशोक मिश्र