संजय मग्गू
पूरी दुनिया में युवा एकांतवासी होते जा रहे हैं। जिस उम्र में उन्हें खेलना-कूदना और मौज-मस्ती करनी चाहिए, वह घर से बाहर ही नहीं निकल रहे हैं। मनोवैज्ञानिकों में युवाओं के इस ट्रेंड को लेकर चिंता हो रही है। विदेश में तो युवाओं की अरुचि के चलते बीयर बार, नाइट क्लब जैसे मनोरंजन स्थल धड़ाधड़ बंद हो रहे हैं। इंग्लैंड में तो नाइट क्लब 37 प्रतिशत तक बंद हो चुके हैं। यदि हम तीन दशक पहले और आज के युवाओं की तुलना करें, तो वाकई हालात चिंताजनक नजर आते हैं। तीन दशक पहले तक लगभग हर युवा अपना एक फ्रेंड सर्किल बना लेता था। पढ़ने-लिखने से फुरसत मिलने के बाद घूमना-फिरना, मौज-मस्ती करना, फिल्में देखना, हाट-बाजार में घूमना उनके रुटीन में शामिल था। घरवालों की जरा सी निगाह चूकी तो वह मौज-मस्ती करते नजर आते थे। वह अपने दोस्तों के साथ न केवल खेलते थे, बल्कि आपस में लड़ाई झगड़ा भी करते थे। कभी चोट खाते थे, तो कभी अपने दोस्त को चोटिल करते थे। इस स्थिति में उनमें इगो जैसी भावना जन्म नहीं लेने पाती थी। थोड़ी देर बाद या कुछ दिनों बाद वह फिर अपने उसी दोस्त के साथ घूमते-फिरते नजर आते थे। यह स्थिति उन्हें जीवन में समझौता करना सिखाती थी। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि ऐसे बच्चों के सामने जब किसी किस्म की चुनौतियां आती थीं, तो वह आसनी से झेल लेते थे। उन चुनौतियों का सामना करते थे। उन्हें अपने मित्रों और सहपाठियों पर भरोसा होता था कि वह समय पड़ने पर उनकी मदद करेंगे। उनके मेल-मिलाप का दायरा भी बड़ा होता था। वह सामाजिक कार्यों में भाग लेते थे। नए-नए लोगों से मिलने पर उनमें संवाद की कला का विकास होता था। लेकिन आज की 30-35 प्रतिशत युवा पीढ़ी लोगों से मिलने जुलने से कतरा रही है। वह घर में ही रहना पसंद कर रही है। यदि शादी विवाह या किसी किस्म का सामाजिक समारोह आयोजित किया गया है और उनके परिवार वालों को इसमें शामिल होना हो, तो नई पीढ़ी के युवाओं की पहली कोशिश होती है कि उन्हें ऐसे कार्यक्रमों में शामिल न होना पड़े। इसके भी कारण समाज में ही मौजूद हैं। मां-बाप या परिजनों का मार्क्स लाने का दबाव, करियर की अनिश्चितता, गैजेट्स का बढ़ता प्रभाव और आर्थिक कठिनाइयों की वजह से युवा तनाव महसूस कर रहे हैं। यह तनाव उन्हें कई बार उग्र बना देता है। छोटी-छोटी बातों पर मारपीट करने पर उतारू हो जाते हैं। ऐसी स्थिति युवाओं के लिए काफी हानिकारक साबित होती है। उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। ऐसी स्थिति में जरूरी है कि युवाओं को समाज से जुड़ने के लिए प्रेरित किया जाए। उन्हें दबाव बनाकर सामाजिक कार्यों में भाग लेने दिया जाए। समाज से जब वह जुड़ेंगे, तो वह जीवन में अकेलापन कतई महसूस नहीं करेंगे। वह समाज का महत्व समझेंगे। वह अपने पड़ोसियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझेंगे, तो जरूरत पड़ने पर उनकी सहायता भी कर सकेंगे।
युवाओं का समाज में न घुलना-मिलना चिंताजनक
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