नगर निगम के अधिकारियों की लापरवाही के कारण करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद शहर स्मार्ट नहीं बन पाया है। बल्कि इनकी कार्यशैली की वजह से लगातार शहर की सूरत तो बिगड़ ही रही है, साथ ही पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है। शहर में चारों तरफ धड़ल्ले के साथ अवैध निर्माण हो रहे हैं। वैसे तो नगर निगम द्वारा अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती। लेकिन अदालत का आदेश आने पर भी कार्रवाई के नाम पर दिखावा किया था। शुक्रवार को अदालत के आदेश पर निगम द्वारा सेक्टर नौ-दस की डिवाइडिंग रोड पर अवैध निर्माणों की सीलिंग की जा रही थी। वहीं दूसरी तरफ यहीं पर निर्माणाधीन इमारतों में काम चल रहा था। इमारत अवैध है तो फिर सीलिंग का ड्रामा क्यों। निगम अधिकारियों ने सीलिंग को अवैध निर्माणों को अभयदान देने का हथियार बनाया हुआ है। सेक्टर नौ-दस की डिवाइडिंग रो पर शुक्रवार को कार्रवाई के दौरान निगम अधिकारियों द्वारा फुटपाथ, रैम्प और बोर्ड तोड़ कर अपना पल्ला झाड़ा जा रहा था।
कार्रवाई के नाम पर ड्रामा
नगर निगम और एचएसवीपी की लापरवाही से चारों तरफ धड़ल्ले के साथ अवैध निर्माण कई वर्षो से हो रहे हैं। सेक्टर की करीब करीब सभी मुख्य सड़कों पर रिहायशी जमीनों पर व्यवसायिक निर्माण बने हुए हैं। वहीं कई स्थानों पर अब भी अवैध निर्माण चल रहे हैं। रिहायशी जमीनों पर बने व्यवसायिक निर्माणों को हटाने के आदेश हाई कोर्ट पहले भी कई बार दे चुका है। लेकिन इनके खिलाफ कार्रवाई के नाम पर निगम द्वारा हर बार सिर्फ खानापूर्ति ही किया जाती है। अदालत की तारीख नजदीक आते ही निगम सक्रिय हो जाता है। हर बार की तरह इस बार शुक्रवार को निगम का तोड़फोड़ दस्ता अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए सेक्टर नौ दस की डिवाइडिंग रोड पर पहुंचा। जहां दस्ते ने अवैध निर्माणों की सीलिंग कर सामने बने रैम्प, फुटपाथ और टाइल्स को तोड़कर पल्ला झाड़ लिया।
अवैध निर्माण का जिम्मेदार कौन?
अवैध निर्माणों की वजह से जहां एक तरफ शहर की सूरत बिगड़ती जा रही है। वहीं दूसरी तरफ निगम के सीमित संसाधनों पर बोझ बढ़ने से आम जनता को मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसना पड़ रहा है। अवैध निर्माणों के खिलाफ पूर्व निगमायुक्त यशपाल यादव द्वारा रणनीति बनाई गई थी। लेकिन उनके तबादले के बाद सब कुछ ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अवैध निर्माणों की लोगों द्वारा शिकायतें भी की जाती हैं। पिछले दिनों ग्रीवेंस कमेटी की बैठक में आई शिकायत पर मंडल आयुक्त द्वारा जांच कमेटी का भी गठन किया गया है। तोड़फोड़ की कार्रवाई करने वाली निगम की शाखा में आउट सोर्सिंग के जेई तैनात किये गए हैं। ऐसे में यह लोग अवैध निर्माणों के खिलाफ कैसी कार्रवाई करते होंगे, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन इस सबके बावजूद नगर निगम आयुक्त न जाने क्यों मौन हैं?
अदालत को करते हैं गुमराह
नगर निगम अथवा एचएसवीपी के अधिकारी सिर्फ अदालत के आदेश पर अतिक्रमण अथवा अवैध निर्माण की तरफ अपना रूख करते हैं। अदालत का आदेश आने पर संबंधित विभाग सिर्फ दिखावा कर गुमराह करने का प्रयास करते है। अदालत को गुमराह करने के लिए पहले भी कई बार हाई वोल्टेज ड्रामा किया जा चुका है। समाज सेवी कृष्ण लाल गेरा की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने एनआइटी में अवैध निमार्णों को तोड़ने के आदेश दिये थे। लेकिन निगम ने एक आध अवैध निमार्णों की दीवार हिलाकर अन्य अवैध इमारतों को सील कर अपना कर्तव्य पूरा कर लिया था। अदालत के आदेश पर हुई कार्रवाई के बाद सीलें तो खुल ही चुकी हैं। साथ ही अवैध निमार्णों की संख्या कई गुणा बढ़ गई है। निगम ने तिकोना पार्क इलाके में भी सीलिंग की थी। अब ज्यादातर इमारतों की सील खुल चुकी है।
तारीख नजदीक आने पर दिखावा
समाज सेवी वरूण श्योकंद का कहना है कि सेक्टरों में मकानों के पिछले हिस्सों में गेट लगाकर लोगों ने जहां ग्रीन बेल्ट नष्ट कर दी है। वहीं व्यवसायिक इमारतों का निर्माण कर रहे हैं। जिसे लेकर उन्होंने वर्ष 2017 में हाई कोर्ट याचिका दायर कर कार्रवाई की मांग की थी। अब अदालत की तारीख नजदीक आने पर कार्रवाई का ड्रामा कर दिखावा कर रहे हैं।
–राजेशदास