कविता
बादशाह खान सिविल अस्पताल के डॉक्टरों और कर्मचारियों की लापरवाही से मरीजों को रोज परेशान होना पड़ता है। बीती रात अस्पताल में दाखिल एक मरीज दर्द से तड़प रही थी, ऐसे में महिला का बेटा स्टाफ के कमरे में पहुंचा तो स्टाफ ने नींद से उठकर उसे डॉक्टर के कक्ष में भेज दिया। वहां कुर्सिया खाली थी और ड्यूटी डॉक्टर सो रहे थे। ऐसे में युवक अपनी बीमार मां को बिना इलाज के बल्लभगढ़ सिविल अस्पताल ले गया। जहां से महिला को सुबह फिर बीके रेफर कर दिया। यहां दोपहर तक महिला को ऑक्सीजन लगवाने के लिए उनके बेटे को चक्कर कटवाए जाते रहे।
यह है पूरा मामला:
रिजवान खान ने बताया कि वह अपने पिता मंसूर खान के साथ अपनी बीमार मां नगीना को लेकर मंगलवार की रात को बीके अस्पताल आया था। नगीना को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। अपातकालीन कक्ष पूरा खाली पड़ा था। काउंटर और चिकित्सक के रूम में कोई नहीं था। वहां कुछ अन्य मरीज भी परेशान थे। उनसे पूछने पर पता चला कि स्टाफ कक्ष में सो रहा है। जिसके बाद उसने विडियो बनाते हुए ही स्टाफ रूम का दरवाजा कई बार खटखटाया। जिस पर एक स्टाफ नींद के नशे में निकली और परेशानी पूछकर उसने उन्हें रूम नम्बर 38 में भेज दिया। वहां पहुंचा तो देखा कि कम्प्युटर कर्मी और चिकित्सक की चेयर खाली थी।
वहां भीतर के कक्ष में कोई व्यक्ति गहरी नींद में सोया हुआ था। ऐसे में उसने दरवाजा खटखटना जरूरी नहीं समझा और मां के दर्द को देखते हुए यहां से बिना इलाज करवाये ही लौट गया। जिसके बाद उन्होंने मां को बल्लभगढ़ अस्पताल में भर्ती करवाया। जहां से उन्हें रेफर बीके के लिए किया जा रहा था।
ऐसे में उन्होंने चिकित्सकों से सुबह तक रखने की गुहार लगाई। रात को रखकर सुबह उन्हें बीके रेफर कर दिया। यहां सुबह से दोपहर तक उसकी मां को चिकित्सक के लिखने के बाद भी ऑक्सीजन नहीं लगाई गई। स्टाफ के पास पहुंचा तो उन्होंने सामने रूम में भेज दिया। जहां उसे मां की ग्लूकोज की बोतल पकड़ कर खडे रहने पड़ा। उसने स्टाफ से फिर ऑक्सीजन लगाने की गुहार लगाई तो उन्होंने बिस्तर पर जाने को बोल दिया। ऐसे में उसे यहां सुबह से दोपहर तक चक्कर कटवाने के बाद भी बुधवार को ऑक्सीजन नहीं लगाई गई। इस विषय में चिकित्सक को बताया तो उन्होंने लिख कर दे दिया। लेकिन इसके बावजूद भी उसे यहां से वहां चक्कर कटवाये गए।