संत दादू दयाल का जन्म गुजरात के अहमदाबाद में सन 1544 को हुआ था। संत दादू दयाल बचपन से ही काफी दयालु किस्म के थे। यही वजह है कि उनके नाम के साथ दयाल जुड़ गया। इन पर कबीरदास का बहुत प्रभाव था। यही वजह है कि इनकी रचनाओं में किसी न किसी रूप में कबीरदास जरूर मौजूद हैं। इन्हें हिंदी, गुजराती और राजस्थानी सहित कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। संत दादू के बारे में मिली जानकारी के अनुसार, बारह साल की उम्र में ही उन्होंने संन्यास धारण कर लिया था। इसके बाद उन्होंने करीब छह साल तक भ्रमण किया।
वे गुजरात, राजस्थान जैसे कई प्रदेशों में भ्रमण करते हुए फतेहपुर सीकरी पहुंचे थे, जहां 40 दिन तक सम्राट अकबर ने सत्संग में उनका उपदेश सुना था। कहते हैं कि दादू के सत्संग के कारण ही अकबर ने अपने राज्य में गौहत्या बंद करवा दी थी। एक बार की बात है। एक सेनापति संत दादू दयाल से मिलने जा रहा था। जब वह उनके ठहरने के स्थान से कुछ दूर रह गया, तो उसने सड़क के किनारे एक बुजुर्ग को रास्ते के कांटे हटाते देखा। उसने दादू दयाल के बारे में पूछा, तो उस बुजुर्ग ने उनकी ओर देखा भी नहीं और उनकी बात का जवाब नहीं दिया।
यह भी पढ़ें : कबीरदास ने सिखाया सरलता का पाठ
उस सेनापति को क्रोध आ गया, उसने एक कोड़ा लगाते हुए फिर वही सवाल दोहराया। इस बार वह चुप रहे। क्रोध में तमतमाते हुए उस सेनापति ने दो कोड़े और लगाए। इसके बाद वह आगे बढ़ गया। कुछ और दूर जाने पर कुछ लोग मिले तो उसने दादू के बारे में पूछा। लोगों ने बताया कि जिधर से तुम आए हो, उधर ही तो दादू रास्ते में बिछे कांटों को हटा रहे हैं। यह सुनकर वह रोता हुआ दादू के पास आया और माफी मांगने लगा। दादू ने हंसते हुए कहा कि जब तुममें अहंकार था, तब तुम्हें गुरु नहीं मिले। अब जब तुम्हारा मन निर्मल है तुम्हें गुरु मिल गए।
-अशोक मिश्र
लेटेस्ट खबरों के लिए क्लिक करें : https://deshrojana.com/