संत कबीरदास समाज सुधार ही नहीं, एक कवि भी थे। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज को सुधार की दिशा में प्रवृत्त किया था। वह जुलाहा का काम करते थे, लेकिन जब समय मिलता वे लोगों के बीच बैठकर अच्छी-अच्छी शिक्षा दिया करते थे। उन्होंने पाखंड का आजीवन विरोध किया। उन्होंने हर धर्म की बुराइयों का विरोध किया और अच्छी शिक्षाओं को ग्रहण करने की दिशा में प्रेरित किया। उनका तो यहां तक मानना था कि अगर आपका कोई निंदक है, तो उसको अपने निकट रखना चाहिए। निंदक व्यक्ति आपकी कमियां बताता रहेगा और आप उन कमियों को दूर कर सकते हो। कमियां दूर हो जाने से व्यक्ति का मन निर्मल हो जाता है।
एक बार की बात है, वह शाम के समय में सत्संग कर रहे थे। उस सत्संग में एक धनी व्यक्ति भी आया हुआ था। वह कबीरदास जी बहुत इज्जत करता था। वह उनके उपदेश से प्रभावित भी बहुत था। तभी उसकी निगाह कबीरदास जी के कुर्ते पर गई। वह साधारण सा कुर्ता पहने हुए थे। उसने सोचा कि कबीरदास जी को एक अच्छा सा कुर्ता भेंट करना चाहिए। अगले दिन वह मलमल का एक कुर्ता ले आया।
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उस कुर्ते का भीतरी भाग साधारण कपड़े का था, बाहरी भाग मलमल का था। उस शाम को जब सत्संग शुरू हुआ, तो वह उसी कुर्ते को पहनकर आए। जब सत्संग में अमीर आदमी आया तो उसने देखा कि कबीरदास जी ने कुर्ता उल्ट पहन रखा था। मलमल का हिस्सा अंतर था और अंदर का साधारण कपड़ा बाहर था। जब सत्संग खत्म हुआ तो वह व्यक्ति कबीर दास जी के पास गया और बोला, यह आपने क्या किया। उन्होंने कहा कि मलमल का नरम कपड़ा शरीर पर लगना चाहिए और साधारण कपड़ा बाहर की ओर। किसी और के सामने मलमल के कपड़े का प्रदर्शन करना ठीक नहीं है। यह सुनकर धनी व्यक्ति शर्मिंदा हो गया।
-अशोक मिश्र
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