जीवन क्षणभंगुर है। कब क्या हो जाए, यह कोई नहीं जानता है। कब और कहां किसकी मौत होगी, इस बारे में भी कोई दावा नहीं कर सकता है। ज्योतिषी ग्रह और नक्षत्र की गणना करके लंबी या कम आयु की बात बता सकता है, लेकिन उसकी बात सही साबित होगी, इसका दावा नहीं कर सकता है। एक बार की बात है। नदी के किनारे कुछ बच्चे रेत से अपने-अपने घर बना रहे थे। बच्चों के लिए यह खेल था। लेकिन यदि किसी बच्चे का पैर या हाथ किसी बच्चे के घर पर लग जाता, तो जिसका घर होता था, वह नाराज हो जाता। उनमें आपस में लड़ाई भी हो जाती।
थोड़ी देर लड़ने-झगड़ने के बाद वे अपने काम में फिर लग जाते। वे एक बार फिर नए सिरे से अपना रेत का घर बनाने में लग जाते। कई बार वह अधबना ही ढह जाता। बच्चा थोड़ी देर चिंतित होता, उसके बाद अपने काम में फिर जुट जाता था। यह करते-करते शाम हो गई। तभी एक महिला ने आकर बच्चों से कहा कि अरे, तुम लोग यहां खेल रहे हो, तुम्हारी माएं तुम्हारा रास्ता देख रही हैं। यह सुनते ही बच्चों ने सिर उठाया, देखा शाम हो गई थी।
वे अपने ही बनाए घर को बिगाड़ने लगे। कोई अपने घर पर कूदता, तो कोई दूसरे के घर पर। इसके बाद बच्चे हंसते-खिलखिलाते अपने घर को लौट गए। इससे थोड़ी दूर पर महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ यह सब कुछ देख रहे थे। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि हम सबका यही हाल है। जब तक जीवन है, तब तक हम बहुत कुछ संचित करते हैं। अपनी संपत्ति पर अभिमान भी होता है, लेकिन इस दुनिया से जाते समय सब कुछ इन बच्चों की तरह यहीं छोड़कर जाना होता है। यह बच्चे जीवन की सटीक व्याख्या कर रहे थे। जब तक बनाया, मोह था। जाने का समय आया, तो बिगाड़कर चल दिए।
-अशोक मिश्र