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कांग्रेस को उत्तर भारत में भी चाहिए एक डीके शिवकुमार

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उत्तर भारत में कांग्रेस को एक डीके शिवकुमार चाहिए। अगर कांग्रेस को उत्तर भारत में अपनी जड़ें जमानी है, भाजपा को शिकस्त देनी है, तो डीके शिवकुमार जैसा पार्टी के प्रति समर्पित और जुनून वाला नेता चाहिए। यह डीके शिवकुमार ही थे जिन्होंने कर्नाटक चुनाव से बहुत पहले कांग्रेस के लिए माहौल बनाने के लिए न दिन देखा, न रात। कर्नाटक जीत की पटकथा उन्होंने लिखी और जब मुख्यमंत्री बनने का मौका आया तो सिद्धा रमैया सिर्फ वरिष्ठ होने के नाते बाजी मार ले गए।

इसके बावजूद अपने शीर्ष नेतृत्व के प्रति न उनकी आस्था डिगी, न विश्वास घटा और न ही समर्पण। पार्टी ने तेलंगाना की जिम्मेदारी सौंपी, तो उन्होंने रेवंत रेड्डी के साथ मिलकर वह कर दिखाया जिसकी कांग्रेस ने एक साल पहले आशा तक नहीं की थी। अब इस बात का कोई मतलब नहीं है कि तीन राज्यों में पराजित कांग्रेस को कितने वोट मिले और भाजपा को कितने? दो राज्य तो हाथ से गए न। जिस राज्य में भी सरकार बनने की आशा थी, वह भी पांच साल के लिए तो वह आशा क्षीण हो गई। यदि कांग्रेस को सरवाइव करना है, तो उसे कुछ आपरेशन करने होंगे।

कड़े और बेदर्द फैसले लेने होंगे। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से लेकर सभी प्रदेशों में जहां-जहां भी गुटबाजी है, उन-उन प्रदेशों में बड़े निर्मम तरीके से आपरेशन करना होगा। कोई कितना भी बड़ा नेता हो, कितना भी लोकप्रिय हो, अगर वह पार्टी के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है। उसको तत्काल पार्टी से बाहर करना होगा। पार्टी नेतृत्व के हुक्म की नाफरमानी करने वाला जितने दिन पार्टी में रहेगा, नुकसान ही पहुंचाएगा। जिस प्रदेश में गुटबाजी पनप रही है, उस प्रदेश के दोनों पक्ष के गुटबाज नेताओं का कान पकड़कर तत्काल निकाल दिया जाना चाहिए।

पंजाब में कैप्टन अमरेंद्र सिंह कांग्रेस से बाहर किए गए, उनकी कितनी राजनीतिक औकात रह गई, यह सब देख चुके हैं। आज उनका कोई नाम लेवा तक नहीं है। पार्टी में दलाल टाइप के कुछ घाघ शीर्ष नेतृत्व से चिपके रहकर भीतर ही भीतर नुकसान पहुंचा रहे हैं। आज भी जब तीन राज्यों में कांग्रेस बुरी तरह पराजित हुई है, तो ये घाघ नेता नेतृत्व को यह आंकड़ा दिखाकर बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं कि कांग्रेस को चार राज्यों में कुल 4 करोड़ 90 लाख वोट मिले और भाजपा को 4 करोड़ 81 लाख वोट। अरे तीन राज्य तो गए न हाथ से, लेकिन नहीं। 

घाघ और दलाल टाइप के नेताओं को चुनावी राज्यों का प्रभारी बनाना, चुनावी पर्यवेक्षक बनाना और गुटबाजी करने वालों को सहन करना ही कांग्रेस पर भारी पड़ गया। सचिन पायलट, केसी वेणुगोपाल, कमलनाथ, जयराम रमेश, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी शैलजा, रणदीप सूरजेवाला, दिग्विजय सिंह, टीएस सिंहदेव, भूपेश बघेल जैसे नेताओं से समय रहते ‘राम-राम’ न किया गया, तो कांग्रेस लोकसभा और विधानसभा चुनाव क्या, ग्राम प्रधान का एक चुनाव तक नहीं जीत सकेगी।

-संजय मग्गू

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