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दलित मतदाता बिगाड़ सकते हैं हरियाणा का सियासी समीकरण

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इनेलो और बसपा के साथ-साथ जननायक जनता पार्टी और आजाद समाज पार्टी के गठबंधन ने कांग्रेस और भाजपा के लिए एक तरह की चुनौती खड़ी कर दी है। इन दोनों गठबंधनों के पास भले ही इतनी शक्ति न हो कि वह प्रदेश में अपनी सरकार बना सकें, लेकिन वह प्रदेश के 21 प्रतिशत दलित मतदाताओं को यदि अपने पक्ष में करने में सफल हो गए, तो भाजपा और कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है। जहां तक साल 2014 से लेकर 2024 की बात है, दलितों का एक बहुत बड़ा हिस्सा कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों से टूटकर भाजपा के साथ चला गया था। भाजपा ने भी इन दलित जातियों को धर्म और हिंदुत्व के नाम पर संगठित करके अपने पक्ष में लाने का प्रयास किया जिसमें वे सफल भी रहे। लेकिन धीरे-धीरे यह सम्मोहन ढीला पड़ने लगा और कांग्रेस का यह प्रचार दलितों के बीच कहीं बहुत गहरे बैठ गया कि भाजपा संविधान ही बदल देना चाहती है।

रही सही कसर, जातिगत जनगणना की मांग ने पूरी कर दी। जातिगत जनगणना और संविधान बचाओ का अस्त्र इतना सटीक रहा कि उसने इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा से पांच सीटें छीन लीं। भाजपा से जुड़ा दलितों का एक बहुत बड़ा समुदाय अब कांग्रेस से आ जुड़ा जिसकी अपेक्षा भाजपा नेताओं ने नहीं की थी। भाजपा ने दलितों को अपने पक्ष में करने के लिए कुरुक्षेत्र में राज्यस्तरीय दलित सम्मेलन भी आयोजित किया, ताकि छिटके हुए दलितों को अपने पक्ष में लाया जा सके। इसमें उन्हें कितनी सफलता मिली, यह तो विधानसभा चुनाव परिणाम बताएंगे। लेकिन जजपा-आजाद समाज पार्टी और इनेलो-बसपा गठबंधन ने इन राजनीतिक दलों में हलचल तो पैदा कर ही दी है।

यदि दलितों को ये दल साधने में सफल हो गए, तो इस बात की पूरी आशंका है कि इस बार फिर किसी दल को बहुमत नहीं मिलने वाली है। पिछली बार की तरह ही इस बार भी गठबंधन सरकार बने, ऐसी संभावना दिख रही है। यही वजह है कि कांग्रेस और भाजपा ने दलितों को लुभाने के लिए अपनी-अपनी योजनाएं बनानी शुरू कर दी है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी जजपा को जाट और दलितों का अच्छा खासा वोट मिला था जिसकी वजह से वह दस सीटें जीतने में कामयाब हो गई थी।

इन दस सीटों के चलते ही वह साढ़े चार साल भाजपा के साथ सत्ता में रही। प्रदेश में 17 सीटें वैसे भी आरक्षित हैं। बाकी बची सीटों में से 35 सीटें ऐसी हैं जिन पर दलित मतदाता किसी भी प्रत्याशी को जिताने की हैसियत रखते हैं। यदि इन 35 सीटों पर दलित मतदाता खेल कर गए, तो प्रदेश की राजनीति ही बदल जाएगी। कांग्रेस और भाजपा को ऐसी हालत में सोशल इंजीनियरिंग का ध्यान रखना होगा, तभी बात बनेगी।

-संजय मग्गू

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