हमारे देश के प्रसिद्ध दार्शनिक और विचारक महात्मा बुद्ध ने कहा है कि जैसा राजा का आचरण होता है, उस राज्य की प्रजा भी वैसा ही आचरण करती है। यही वजह है कि महात्मा बुद्ध और उनके बाद के अनुयायियों ने राजाओं को अहिंसक बनाने का प्रयास किया। ठीक ऐसी ही मान्यता ईरान के बादशाह नौशेरवां की थी। उसका कहना था कि हम जिस तरह का आचरण करेंगे, हमारे सैनिक भी ऐसा ही करेंगे। यदि मैं किसी के बाग से एक आम चुरा लूं, तो हमारे सैनिक पूरा बाग उजाड़ देंगे। नौशेरवां अपने आचरण के प्रति बहुत सतर्क रहते थे। वह कोई भी ऐसा काम करने से परहेज करते थे जिससे किसी का अनिष्ट होने की दूर-दूर तक संभावना हो। एक बार की बात है।
नौशेरवां कहीं जा रहा था। उनके साथ पूरा लावलश्कर था। उन्हें शाम को एक जगह पड़ाव डालने की आज्ञा दी। खाना खाते समय उन्हें लगा कि खाने में नमक कम है। उन्होंने पता किया तो शिविर में नमक नहीं बचा था। उन्होंने पास के गांव से नमक लाने का आदेश देते हुए कहा कि उस नमक की कीमत जरूर अदा कर देना। सिपाही ने कहा कि एक चुटकी नमक की कीमत कौन लेगा? जिसको भी पता चलेगा कि नमक बादशाह के लिए लिया जा रहा है, वह अपने को धन्य मानेगा। उन्होंने कहा कि नमक की कीमत अदा करने के बाद ही लना।
यदि आज मैंने बिना कीमत चुकाए नमक स्वीकार कर लिया, तो कल हमारे राज्य के दरबारी, सामंत और वरिष्ठ अधिकारी प्रजा को लूटना शुरू कर देंगे। बादशाह को हमेशा इन छोटी-छोटी बातों को ध्यान रखना चाहिए क्योंकि यही छोटी-छोटी बातें एक दिन बड़ी हो जाती हैं। मैं अपनी प्रजा को किसी भी तरह का कष्ट नहीं दे सकता हूं। मेरे कारण किसी को कष्ट हो, यह भी मैं कतई स्वीकार नहीं कर सकता हूं।
-अशोक मिश्र
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